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________________ ३५६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गर्भ रहने का पता चलता है तो वह और उसकी दूसरी रानियाँ बड़ी खेदखिन्न होती हैं। पीछे राजा को उसके पुत्र होने का समाचार मिलता है। राजा उसे दण्ड देने के लिए जाता है पर पीछे उसे साग भेद मालूम होने से वह बड़ा लजित होता है और अपनी पत्नी-पुत्र को बड़े उत्सव के साथ घर ले आता है। इस लोककथा को धार्मिक कथा के रूप में इस प्रकार परिवर्तित किया गया है कि मानवती ने पूर्व जन्म में झूठ बोलने का त्याग किया था इसलिए इस जन्म में उसे वह शक्ति मिली कि उसने विनोदवश बोले गये अपने गर्विष्ट वचनों को भी पूरा किया । रचयिता एवं रचनाकाल-इसकी रचना पंन्यास तिलकविजयगणि ने सं० १९३९ में की है। इनकी अन्य रचनाएँ और विशेष परिचय ज्ञात नहीं हो सका है। मारामशोभाकथा-आरामशोभाकथा लौकिक कथा-साहित्य की रोचक कथा है पर यह सम्यक्त्व की महिमा प्रकट करने के लिए एक धर्मकथा के रूप में दी गई है। जैन कथाओं में इसे हरिभद्रसूरिकृत सम्यक्त्वसप्ततिका पर संघतिलकसूरिविरचित तत्त्वकौमुदी नामक विवरण ( वि० सं० १४२२) में पाते हैं । ___ स्वतंत्र रचनाओं के रूप में सं० १५३७ में जिनहर्षसूरि ने संस्कृत छन्दों में ५०० ग्रन्थान-प्रमाण आरामशोभाकथा' की रचना की। जिनहर्षसूरि खरतरगच्छीय पिप्पलकशाखा के जिनचन्द्रसूरि के शिष्य थे। दूसरी रचना ४२० ग्रन्थान-प्रमाण उन्हीं जिनचन्द्रसूरि के शिष्य मलयहंसगणि ( १६वीं शती) ने लिखी। इस पर कुछ अशातकर्तृक रचनाएँ भी मिलती हैं। अनंगसुन्दरीकथा-इसमें उज्जैननरेश जयसेन की रानी अनंगसुन्दरी जो कि कुमार श्रमणकेशी की माता थी, की कथा ३०० श्लोकों में वर्णित है।' रचयिता का नाम अज्ञात है। १. त्रिनन्दग्रहभूसंख्ये वैक्रमीये सुवत्सरे (१९५९)। रचयामास पंन्यासो गणीन्द्र स्तिलकाभिधः ॥ २-१. जिनरत्नकोश, पृ० ३३. ५. वही, पृ० ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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