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कथा-साहित्य
३५३ गुणावलीकथा-इसमें गुणावली के शीलरक्षा के प्रयत्नों का वर्णन है।' इसको रचना जिनचन्द्रसूरि ने की है जो नागपुरीय तपागच्छ के सागरचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इनका अन्य ग्रन्थ सिद्धान्तरत्निकाव्याकरण (सं० १८५०) भी मिलता है।
शीलवतीकथा-कुमारपालप्रतिबोध-समागत अजितसेन-शीलवती के रोचक चरित को लेकर शीलवतीकथा और शीलवतीचरित्र नामक कई रचनाएँ मिलती हैं। ___ कथावस्तु-शीलवती का पति श्रेष्ठिपुत्र अजितसेन राजा के साथ परदेश जाने लगा तो उसे अपनी पत्नी के प्रति बड़ी चिन्ता हुई। शीलवती ने प्रतिज्ञा कर विश्वास दिलाया कि उसका शील त्रिकाल में भी भंग न होगा। पर घर में उसके श्वसुर को उस पर शङ्का हुई और वह उसे रथ पर बैठाकर पीहर के लिए रवाना हो गया। रास्ते में शीलवती ने अपनी चातुरी से कई अद्भुत कार्य किये। इससे उसका श्वसुर प्रसन्न हो गया और उसने उसे सारे घर की मालकिन बना दिया ।
एक बार राजा ने भी क्रमशः अशोक, रतिकेलि, ललितांग, कामांकुर आदि को भेज शीलवती की परीक्षा की पर शीलवती ने चतुराई से उन्हें एक गड्ढे में कैद कर दिया। एक बार राजा उसके पति अजितसेन के साथ उसके यहां भोजन करने आया । शीलवती ने उन कैद किये गये व्यक्तियों द्वारा शीघ्र ही भोजन तैयार करा दिया। पीछे सारा रहस्य खुला कि राजा के भेजे लोगों की क्या दुर्दशा हुई थी आदि ।
इस कथानक को लेकर सोमतिलकसूरि ने शीलवतीकथा लिखी । चन्द्रगच्छ के उदयप्रभसूरि ने ९८८ ग्रन्थान परिमाण एक संस्कृत रचना बनाई जिसकी प्राचीन प्रति सं० १४०० की मिलती है। इसी तरह रुद्रपल्लीय गच्छ के आनन्दसुन्दर के शिष्य आज्ञासुन्दर ने सं० १५६२ में शीलवतीकथा की संस्कृत में रचना की।
विनयमण्डनगणि और नेमिविजय ने उक्त कथानक पर शीलवतीचरित्र' नामक ग्रन्थ लिखे।
शीलवतीकथा पर अज्ञातकर्तृक दो प्राकृत रचनाएँ भी उपलब्ध हुई हैं।
१. जिनरस्नकोश, पृ० १०६. २-६. जिनरत्नकोश, पृ० ३८४-८५ में उपर्युक्त सभी ग्रन्थ अंकित हैं। उनमें
से एक प्रकाशित हो गया है। २३
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