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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जिनरत्नसूरि साथ थे।' जिनरत्नसूरि ने सं० १३४१ में लीलावतो कथासार की रचना की । इसकी रचना जावालिपत्तन ( जालौर) नगर में हुई थी । इसकी रचना में भी कवि ने अपने सहयोगी लक्ष्मीतिलकगणि की सहायता ली है । इसमें प्रत्येकबुद्धचरित से भी बहुत सामग्री ली गई है।' इसका संशोधन सौम्यमूर्तिगणि तथा जिनप्रबोधयति ने किया था । ३४६ उक्त रचनाओं के अतिरिक्त कवि कुञ्जरकृत लीलावतीकाव्य और एक अज्ञातकर्तृक लीलावती कथा का उल्लेख हुआ है । ' ऋषिदत्ताचरित - इसमें ऋषि अवस्था में हरिषेण प्रीतिमती से उत्पन्न पुत्री ऋषिदत्ता और राजकुमार कनकरथ का कौतुकतापूर्ण चरित्र वर्णित है । कनकरथ एक अन्य राजकुमारी रुक्मिणी से विवाह करने जाता है पर मार्ग में एक वन मे ऋषिदत्ता से विवाहकर लौट आता है । रुक्मिणी ऋषिदत्ता को एक योगिनी के द्वारा राक्षसी के रूप में कलंकित करती है । उसे फाँसी की भी सजा होती है । पर ऋषिदत्ता अपने शील के प्रभाव से सब विपत्तियों को पार कर जाती है और अपने प्रिय से समागम करती है । इस आकर्षक कथानक को लेकर संस्कृत - प्राकृत में कई कथाकाव्य उपलब्ध होते हैं । इस कथा पर सबसे प्राचीन रचना प्राकृत में है जो परिमाण में १५५० ग्रन्थाग्र है ।" इसकी रचना नाइलकुल के गुणपाल मुनि ने की है। लेखक की अन्य रचना 'जम्बूचग्यि' भी मिलती है । इसिदत्ताचरिय ( ऋषिदत्ताचरित्र) की प्राचीन प्रति सं० १२६४ या १२८८ की मिलती है । इससे यह उक्त काल के पूर्व की रचना है । गुणपाल मुनि का समय भी ९ - १०वीं शताब्दी के बीच अनुमान किया गया है । दूसरी रचना १९९४ संस्कृत श्लोकों में है जो चार सर्गों में क्रमशः इस १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावलि, पृ० ४९, ५२, ५६. २. प्रत्येकबुद्धचरित, सर्ग ३, इलो० १८२-१९६; लीलावतीकथासार, १.७२-८७.. ३. लीलावतीकथासार, प्रशस्ति. ४. जिनरत्नकोश, पृ. ३३८. ५- ६. वही, पृ० ५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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