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कथा-साहित्य
३४७ प्रकार विभक्त हैं : प्रथम में २५८, दूसरे में २७८, तीसरे में ५४० और चतुर्थ में ११८ श्लोक । कर्ता का नाम नहीं दिया गया है।
अन्य अज्ञातकर्तृक रचनाएँ विभिन्न परिमाण की मिलती हैं यथा २८२७ ग्रन्थान, ४४२ ग्रन्थान (संस्कृत) और ४५१ संस्कृत श्लोकों में ।
इस चरित्र पर अज्ञातकर्तृक एक ऋषिदत्तापुराण और ऋषिदत्तासतीआख्यान के उल्लेख मिलते हैं।'
भुवनसुन्दरीकथा-महासती भुवनसुन्दरा की चमत्कारपूर्ण कथा को लेकर प्राकृत में एक विशाल रचना की गई जिसमें ८९११ गाथाएँ हैं। इन गाथाओं का परिमाण बृहटिप्पनिका में १०३५० ग्रन्थान बतलाया गया है। इसकी रचना सं० ९७५ में नाइलकुल के समुद्रसूरि के शिष्य विजयसिंह ने की है । इसकी प्राचीनतम प्रति सं० १३६५ की मिली है।
सुरसुन्दरीचरिय-प्राकृत भाषा में निबद्ध यह राजकुमार मकरकेतु और सुरसुन्दरी का एक प्रेमाख्यान है। इसमें १६ परिच्छेद हैं, प्रत्येक में २५० गाथाएँ हैं और कुल मिलाकर ४००१ गाथाओं में समाप्त हुआ है। ___ कथावस्तु-सुरसुन्दरी कुशाग्रपुर के राजा नरवाहनदत्त की पुत्री थी । वह नाना विद्याओं में निष्णात थी। चित्र देखने से उसे हस्तिनापुर के मकरकेतु नामक राजकमार से आसक्ति हो गई थी। उसकी सखी प्रियंवदा मकरकेतु की तलाश में निकलती है। उसे बुहिला नामक एक परिव्राजिका ने कपट से नास्तिकता का पाठ पढ़ाना चाहा किन्तु सुरसुन्दरी ने उसे तर्कों से पराजित कर दिया । उसने रुष्ट होकर उसका चित्रपट उज्जैननरेश श@जय को दिखाकर विवाह के लिए उभाड़ा। शत्रुजय ने उसके पिता से सुरसुन्दरी की माँग की पर वह ठुकरा दी गई जिससे दोनों राजाओं में युद्ध छिड़ गया। इसी बीच वैताढ्य पर्वत के एक विद्याधर ने सुरसुन्दरी का अपहरण
१-२. जिनरत्नकोश, पृ०.५९. १, वही, पृ० २९९; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० १८७. ४. जिनरत्नकोश, पृ० ६७, ४४७; मुनि राजविजय द्वारा संपादित एवं जैन
विविध साहित्य शास्त्रमाला द्वारा प्रकाशित, बनारस, सं० १९७२; अभयदेवसूरि ग्रन्थमाला, बीकानेर से भी प्रकाशित; इसका गुजराती अनुवाद जैनधर्म प्र० सभा, भावनगर से १९१५ में प्रकाशित.
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