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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दी गई हैं। कुवलयमाला के समान ही इसका नाम इन कथाओं के एक नायिका-पात्र के नाम से रखा गया है और कथाओं को एक साथ पूर्वभवों के दृष्टान्त द्वारा जोड़ा गया है। कथानक संक्षेप में इस प्रकार है : राजग में सिंह नाम का राजपुत्र था, उसका विवाह एक सामन्त की पुत्री लीलावती से हुआ । राजा-रानी की मृत्यु के बाद सिंह ने राज्यपद पाया और अपने एक मित्र जिनदत्त के सम्पर्क से जिनधर्मी हो गया। एक समय जिनदत्त के धर्मगुरु समरसेन राजगृह में आते हैं और वे सब उनका उपदेश सुनने के लिए जाते हैं। राजा सिंह ने मुनि के अनुपम व्यक्तित्व से प्रभावित हो उनका परिचय पूछा । मुनि ने अपने तथा अपने पूर्वजन्म के साथियों को कथाएँ बतलाते हुए कहा कि कौशाम्बी में विजयसेन नरेश, जयसेन मन्त्री, शूर पुरोहित पुरन्दर कोषाध्यक्ष तथा सार्थपति धन अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए रहते थे। उस नगर में सुधर्म मुनि के आने पर विजयसेन आदि पाँचों उनसे सांसारिक दुःखों का कारण पूछने गये। मुनि उक्त पञ्चदोष युगलों को संसार का कारण बतलाते हैं और उनका फल भोगनेवाले क्रमशः राजपुत्र रामदेव, राजपुत्र सुलक्षण, वणिक्पुत्र वसुदेव, राजकुमार वज्रसिह तथा राजपुत्र कनकरथ की दृष्टान्त-कथाएँ कहते हैं। इसके बाद स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियों के वश में होने से उनके कुफल की सूचक पाँच कथाओं के प्रसंग में श्रोतारूप से उपस्थित विजयसेन नरेश आदि पाँचों व्यक्तियों के पूर्वभव की कथाएँ कहते हैं, जिन्हें सुन वे सब विरक्त हो गये और तपस्याकर स्वर्ग गये । वहाँ उन लोगों ने अगले भवसुधार के लिए परस्पर प्रतिबोध करने की प्रतिज्ञा की। स्वर्ग से च्युत होकर वे सब विभिन्न स्थानों में मनुष्यभव में जन्मे । जयसेन मन्त्री का जीव समरसेन नामक राजपुत्र हुआ पर वह कुसंस्कारों के कारण शिकारी बन गया। पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार उसे पुरोहित शूर के जीव एक देव ने हिंसा त्यागने के लिए सम्बोधित किया इससे वह राजपुत्र मुनि हो गया। तपस्या के प्रभाव से मुनि समरसेन अपने पूर्वभव के मित्रों को जान लेता है और उन्हें धर्ममार्ग में लाने के लिए प्रतिबोध हेतु भ्रमण करता है। मुनि बतलाता है कि जयसेन का जीव समरसेन मैं ही हूँ और विजयसेन नृप के जीव राजा सिंह और सार्थवाह धन के जीव लीलावती को, जो तुम दोनों मेरे सम्मुख बैठे हो, प्रतिबुद्ध करने आया हूँ। यह सुन लीलावती और सिंह को जातिस्मरण हो गया और उसने पिनदीवार लेकर तपश्चरण द्वारा मोक्ष- पद पाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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