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________________ ३४२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ___ इस ग्रन्थ को उन्होने जावालिपुर (जालोर) के भग० ऋषभदेव के मंदिर में रहकर चैत्र कृष्णा चतुर्दशी के अपराह्न में, जब कि शक सं० ७०० के समाप्त होने में एक ही दिन शेष था, पूर्ण किया था। उस समय नरहस्ति श्रीवत्सराज यहाँ राज्य करता था। यह समय विक्रम सं० ८३५ आता है और ईस्वी सन् ७७९ की मार्च २१ को समाप्त हुआ समझना चाहिए । कुवलयमालाकथा-परमार नरेशों-मुंज, भोज आदि तथा चौलुक्य नृपों सिद्धरःज और कुमारपाल आदि के समय अपभ्रंश और प्राकृत की रचनाओं को संस्कृत में या विशाल संस्कृत की रचनाओं का साररूप देने के प्रयत्न किये गये हैं। कुवलयमालाकथा भी उन्हीं प्रयत्नों में से एक है। इसे कुवलय तस्सुजोयणणामो तणमो मह विरइया तेण । तुङ्गमलंचं जिणभवणमणहरं सावयाउलं विसमं ॥ जावालिउरं अहावयं व अह अस्थि पुहईए॥ तुंगं धवलं मणहारिरयणपसरंत - धयवडाडोयं । उसभ जिणिदाययर्ण करावियं वीरभहेण ॥ तस्थ ठिएणं अह चोइसीए चेत्तस्स कण्हपक्खम्मि । गिम्मविया बोहिकरी भव्वाणं होउ सम्वाणं ।। परभड-भिउडी-भंगो पणईयणरोहिणीकलाचन्दो। सिरिवच्छरायणामो रणहत्थी पस्थिवो जइया ॥ को किर वच्चइ तीरं जिणवयण-महोयहिस्स दुत्तारं । थोयमहणा वि बद्धा एसा हिरिदेविवयणेण ॥ सगकाले वोलीणे वरिसाण सएहिं सत्तहिं गएहि । एगदिणेणूणेहिं रइया भवरण्हवेलाए ॥ ण कहत्तणाहिमाणो ण कव्वबुद्धीए विरइया एसा। धम्मकह त्ति णिबद्धा मा दोसे काहिह इमीए॥ २. अमितगति ने अपनी पूर्ववर्ती धर्मपरीक्षा (अपभ्रंश) का तथा पंचसंग्रह और माराधना (प्राकृत) का संक्षिप्त रूपान्तर संस्कृत में दिया है, समराइच्चकहा का संक्षेप प्रद्युम्नसूरि ने समरादित्यसंक्षेप (सं० १३२५) तथा देवचन्द्र के प्राकृत शान्तिनाथचरित्र का मुनिदेव ने संस्कृत (सं० १३२२) रूपा. न्तर किया है और देवेन्द्रसूरि ने सिद्धर्षि की उपमितिभवप्रपंचाकथा का सारोद्धार (सं० १२९८) प्रस्तुत किया है। ३. सिंघी जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशित, सन् १९७०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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