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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सुन्दरी पुत्री थी। एक दिन वह उपवन में क्रीड़ा करने गई तो सरोवर में उसने हंसयुगल को देखा। इससे वह मूञ्छित होकर गिर पड़ी क्योंकि उसे जातिस्मरण से मालूम पड़ा कि वह पूर्वभव में इसी प्रकार हंसयुगल थी। उसके पति को एक शिकारी ने मार डाला था। तब उसके प्रेम के कारण वह भी उसके साथ जल मरी थी।
अब वह अपने पूर्वजन्म के पति को ढूँढ़ने लगी। उसने एक सुन्दर चित्रपट बनाया जिसमें हंसयुगल का जीवन चित्रित था। इसकी सहायता से उसने अनेकों वियोगों, विरहों के बाद अपने पूर्वजन्म के पति को ढूँढ लिया । वे दोनों अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध नाव में बैठकर भाग निकले और गन्धर्व विधि से विवाह कर लिया। परदेश में भटकते समय उन्हें चोरों ने पकड़ लिया
और काली देवी के सामने बलि चढ़ाने ले गये पर किसी तरह उनका बचाव हुआ। माता-पिता ने उन्हें खोजकर उनका विधिवत् विवाह कर दिया। ___ एक समय वे दोनों पति-पत्नी वसन्त ऋतु में वनविहार कर रहे थे । वहाँ उन्हें उस मुनि से उपदेश सुनने को मिला जो कि उनके पूर्वजन्म में नर हंस को मारनेवाला शिकारी था। इससे वे इतने प्रभावित हुए कि उन्हें संसार से विरक्ति हो गई और दोनों मुनि एवं साध्वी बन गये। वही तरंगवती मैं सुव्रता आर्या हूँ।
यह आत्मकथा उत्तमपुरुष में वर्णित है ।
रचयिता एवं रचनाकाल-इस तरंगलोला के रचयिता वीरभद्र आचार्य के शिष्य नेमिचन्द्रगणि हैं जिन्होंने मूल तरंगवतीकथा के लगभग १००० वर्ष पश्चात् यश नामक अपने शिष्य के स्वाध्याय के लिए इसे लिखा था। नेमिचन्द्र के अनुसार पादलिप्त ने तरंगवती की रचना देशी भाषा में की थी जो अद्भुत रससम्पन्न एवं विस्तृत थी और केवल विद्वद्भोग्य थी। लेखक के सम्बन्ध में अन्य बातें ज्ञात नहीं हैं।
१. नेमिचन्द्रगणि ने पादलिप्त की तरंगवई के सम्बन्ध में निम्न गाथाएं लिखी हैं :
पालित्तएण रड्या वित्थरको तह य देसिवयणेहिं । नामेण वरंगवई कहा विचित्ता य विउला य ॥ न य सा कोई सुणेइ नो पुण पुच्छइ नेव य कहेइ । विउसाण नवर जोगा इयरजणो तीए किं कुणउ ॥
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