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________________ कथा-साहित्य ३३७ कुवलयमाला-यद्यपि यह स्त्री-प्रधान कथा नहीं है फिर भी कथा को आकर्षक बनाने के लिए यह नाम दिया गया है। १३००० श्लोक-प्रमाण यह बृहत् कृति महाराष्ट्री प्राकृत में गद्य-पद्य मिश्रित चम्पू शैली में लिखित प्रतादपूर्ण रचना है। इसमें महाराष्ट्री के साथ साथ कहीं-कहीं कुतूहलवश, तो कहीं वचनवशीभूत होकर संस्कृत, अपभ्रंश, द्राविड़ी और पैशाची एवं देशी भाषा का भी प्रयोग हुआ है । यह बात रचयिता ने इन शब्दों में कही है: पाइय भासा रइया मरहट्टय देसिवण्णय णिबद्धा। सुद्धा सयल-कहच्चिय तावस-जिण-सत्थ वाहिल्ला ॥ कोऊहलेण कत्थइ पर-वयण-वसेण सक्कय णिबद्धा। किंचि अपब्भंसकया दाविय पेसाय आसिल्ला ।। रचयिता ने इसे सर्गों, प्रकरणों अथवा अध्यायों में विभक्त नहीं किया है और न कण्डिकाओं का ही क्रमांक दिया है। इसकी अब तक केवल दो ही हस्तप्रतियाँ-एक ताड़पत्र पर और दूसरी कागज पर मिली हैं। इससे लगता है कि इसका प्रचार बहुत कम हुआ। इसका एक कारण इसकी पाण्डित्यपूर्ण भाषा और शैली भी है। इसमें कहीं रूपकों की बहुलता, तो कहीं दीर्घ ललितपद; कहीं उलापक कथा, तो कहीं कुलक; कहीं गाथाएँ एवं द्विपदी गीतक, तो कहीं द्विवलय, त्रिवलय एवं चतुर्वलय; कहीं दण्डक रचना, तो कहीं नाराच रचना; कहीं वृत्त, तो कहीं तरङ्ग रचना, और कहीं मालावचन, बिन्याम आदि दिखाई पड़ते हैं। कथा में एकरसता या नीरसता को हटाने के लिए कुवलयमालाकार ने नगर-वर्णन', युद्ध-वर्णन, प्रकृति-चित्रण', विवाह-वर्णन आदि प्रचुररूपेण - १. डा० मा० ने० उपाध्ये द्वारा सम्पादित और दो भागों में प्रकाशित, सिंघी जैन ग्रन्थमाला (क्रमांक ४५-४६), भारतीय विद्याभवन, बम्बई, १९५९ और १९७०. दूसरे भाग में अंग्रेजी में लिखी विस्तृत प्रस्तावना है तथा रत्नप्रभसूरिविरचित संस्कृत कुवलयमालाकथा दी गई है। २. पृ० ७. ३. पृ० १०. ४. पृ० १६. ५. पृ० १७०, १७१. २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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