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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हरिबलधीवरचरित — वर्धमानदेशना ( शुभवर्धनमणि ) में जीवदया के महत्त्व को समझाने के लिए हरिबल धीवर की कथा आती है । उसी कथानक को लेकर संस्कृत में हरिबलकथा एवं हरिबलचरित नामक अज्ञातकतृक रचनाएँ तथा हरिबलसम्बन्ध नामक प्राकृत रचना का उल्लेख मिलता है ।' २०वीं शती के तपागच्छीय आचार्य यतीन्द्रसूरि ने सं० १९८४ में हरिबलधीवरचरित की रचना संस्कृत गद्य में की है । ' ३३० सुन्दरनृपकथा — इसमें १६४ श्लोक हैं। इसमें सुन्दरनृप द्वारा खदारसन्तोषव्रत पालन करने की कथा वर्णित है । इस पर गुजराती में सुन्दरराजारास ( सं० १५५१ ) आगमगच्छ के क्षमाकलशकृत मिलता है । कुलध्वजकथानक - इसमें परस्त्रीत्यागवत के माहात्म्य को बतलाने के लिए कुलध्वज कुमार की कथा वर्णित है । इस संस्कृत रचना के रचयिता का नाम ज्ञात नहीं है । गुजराती में कक्कसूरि के शिष्य कीर्तिहर्ष द्वारा सं० १६७८ में रचित कुलध्वजकुमाररास भी मिलता है । " सुसढच्चरित - राजा की आज्ञा भंग करने से इस भव और परभव में अनेक दुःख मिलते हैं । सुसद ने चतुर्थ, षष्ठं व्रत कर उन दुःखों को पार कर लिया । महानिशीथ की अन्तिम चूला में सुसट का चरित वर्णित है । उसको लेकर देवेन्द्रसूरि ने प्राकृत गाथाओं में इसकी रचना की है ।" इसकी हस्तलिखित प्रतियों में ४८७ से लेकर ५२० प्राकृत-गाथाएँ मिलती हैं। इसी चरित्र पर लब्धिमुनि ( २०वीं शती) ने संस्कृत में एक कृति रची है।' गुजराती में इस कथा पर कई रचनाएँ हैं । १. जिनरत्नकोश, पृ० ४५९; हरिषेण के बृहत्कथाकोश में ऐसी ही मृगसेन धीवर की कथा ( संख्या ७२ ) दी गई है । २. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ४१. ३. जिनरत्नकोश, पृ० ४४५. ४. वही, पृ० ९५. ५. जैन गुर्जर कविभो, भाग १, पृ० ९२. ६-७. जिनरत्नकोश, पृ० ४४७-४४८; जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित. ८. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृतिग्रन्थ, द्वितीय खण्ड, पृ० ३०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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