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कथा-साहित्य
३३१ सुरसुन्दरनृपकथा-रत्नशेखरसूरिकृत श्राद्धविधि की स्वोपज्ञवृत्ति में श्रावक के गुणों को बतलाने के लिए सुरसुन्दर नृप और उसकी पाँच पत्नियों की कथा दी गई है। उस पर सुरसुन्दरनृपकथा (प्राकृत ) नामक अज्ञातकर्तृक रचना का उल्लेख मिलता है।'
नरसुन्दरनृपकथा-हरिभद्रकृत उपदेशपद की टीका में तीव्र भक्ति के उदाहरणरूप नरसुन्दरनृपकथा कही गई है। इस पर स्वतन्त्र अज्ञातकतृक नरसुन्दरनूपकथा का उल्लेख मिलता है। इस पर दूसरी रचना नरसंवादसुन्दर मिलती है जिसके लेखक राजशेखर के शिष्य रत्नमण्डनगणि माने गये हैं। रत्नमण्डन सम्भवतः वे ही हैं जिनकी भोजप्रबन्ध, उपदेशतरंगिणी, पृथ्वीधरप्रबन्ध एवं सुकृतसागर रचनाएँ मिलती हैं।
मेघकुमारकथा-मानवृत्ति के कुपरिणाम-सूचन के लिए उपदेशवृत्ति में मेषकुमार की कथा आई है। उसे ही स्वतंत्र रचना के रूप में प्रस्तुत कृति में प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थकर्ता का नाम अज्ञात है।
सहस्रमल्लचौरकथा-जैनधर्म की आराधना का महत्व बतलाने के लिए शुभवर्धनगणिकृत वर्धमानदेशना ( प्राकृत ) में उक्त कथा दी गई है। उस पर अज्ञातकतृक सहस्रमल्लचौरकथा का उल्लेख मिलता है।
सागरचन्द्रकथा-सम्यग्ज्ञान के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए वर्धमानदेशना में सागरचन्द्र सेठ की कथा दी गई है। उसी को लक्ष्यकर अज्ञातकर्तृक एक रचना प्राकृत में मिलती है। इसका रचनासमय ज्ञात नहीं है ।
सागरश्रेष्ठिकथा-देवद्रव्यग्रहण और लोभ के कुफल को बताने के लिए सागरसेठ की कथा उपदेशप्रासाद में दी गई है। उसी पर अज्ञातकर्तृक एक संस्कृत कथा उपलल्ध होती है।
1. जिनरत्नकोश, पृ० ४४६. २. वही, पृ० २०५. ३. वही, पृ० २०५, ४०६, हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१९. ४. वही, पृ० ३१३. ५ वही, पृ० ४२९. ६. वही; उपदेशमाला १८१, उपदेशप्रासाद १३-१६० में भी अन्य प्रसंगों में
सागरचन्द्र कथा दी गई है। ७. जिनरत्नकोश, पृ. ४१९.
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