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कथा-साहित्य
अज्ञातकर्तृक रचनाओं में रूपसेनकनकावतीचरित्र, रूपसेनकथा, रूपसेनपुराण नामक ग्रन्थ मिलते हैं।'
ज्ञातकतृक रचनाओं में तपागच्छीय हर्षसागर के प्रशिष्य एवं राजसागर के शिष्य रविसागर ने सं० १६३६ में रूपसेनचरित्र लिखा।
दूसरी कृति सुधाभूषण और विशालराज के शिष्य जिनसूरि ने संस्कृत गद्य में निर्माण की है । इसका रचनाकाल ज्ञात नहीं है।
तीसरी रचना किसी दिगम्बर धर्मदेव ने लिखी है।
करिराजकथा-आसनदान के माहात्म्य के लिए करिराजकथा का विधान हुआ है। इस कथा पर सं० १४८९ में किसी अज्ञात कर्ता ने ग्रन्थ लिखा।' दानप्रदीप ( सं० १४९९ ) के छठे प्रकाश में भी यह कथा शामिल है ।
वंकचूलकथा-औपदेशिक कथाओं में दान, शील, तप, भावना आदि को एकचित्त से पालने के लिए वंकचूल का उदाहरण आया है। उक्त कथा पर प्राकृत वक्कचूड़कहा नामक कृति का उल्लेख मिलता है। उसके कर्ता और रचनाकाल ज्ञात नहीं हो सके। गुजराती में इस पर कई काव्य लिखे गये हैं।
तेजसारनृपकथा-इसमें जिनप्रतिमा को जिन सदृश मानकर आराधना करने के माहात्म्य को प्रकट करने लिए तेजसारनृप की कथा दी गई है। इसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। इस कथा में दीपपूजा का विशेष माहात्म्य दिया गया है । गुजराती में कुशललाभकृत तेजसाररास (सं० १६२४) भी मिलता है।
गुणसागरचरित-पृथ्वीचन्द्र नृप के पूर्वभवों का सहयोगी गुणसागर था। उसका चरित्र भी पृथ्वीचन्द्र नृपर्षि के समान पावन है। देवेन्द्रसूरि के शिष्य धर्मकीर्ति ने 'संघाचारविधि' में गुणसागर की कथा दी है।
१-४. जिनरत्नकोश, पृ० ३३३. ५. वही, पृ० ६८. ६. वही, पृ० ३४०. ७. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ४८३, ५८९. ८. जिनरत्नकोश, पृ० १६१. ९. गुर्जर जैन कविमो, भाग १, पृ० २१४.
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