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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास धनदत्तकथा - श्रावकधर्म में व्यवहारशुद्धि के लिए अमरचन्द्र ने संस्कृत में दत्तकथा' लिखी है । धनदत्तकथा पर गुजराती में कई रास' लिखे गये हैं 1 ३२२ अमरसेन-वज्रसेनकथानक — दान एवं पूजा से अपार सुख मिलता है । इस बात का द्योतन करने के लिए अमरसेन- वज्रसेन राजर्षि की कथा इसमें वर्णित है । इस पर कई कृतियाँ मिलती हैं। पहली कृति १६वीं शती के मतिनन्दनगणि की है जो खरतरगच्छ में पिप्पलकगच्छ के धर्मचन्द्रगणि के शिष्य थे। इनकी अन्य कृति धर्मविलास मिलती है। उक्त कथा पर अन्य दो अज्ञातकर्तृक रचनाएँ भी हैं जिनमें एक की रचना सं० १६५८ में हुई थी।" सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में गुजराती में इस कथानक पर कई ग्रन्थ लिखे गये हैं । " अमरदत्त-मित्रानन्दकथानक - इसमें अमरदत्त - मित्रानन्द के सरस सम्बन्ध को दिखाते हुए दान के प्रभाव से उन दोनों ने संसार में किस तरह सुख पाया यह दिखलाया गया है। इसके रचयिता भावचन्द्रगणि हैं जो भानुचन्द्रगणि के शिष्य थे । उन्होंने यह कथा शान्तिनाथचरित्र में वर्णित की है । इस पर गुजराती में कई रास बने हैं। -- सुमित्र कथा- -यह कथा वर्धमानदेशना ( शुभवर्धन गणि) में दसवें श्रावकव्रत के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए दी है । स्वतन्त्र रचनाओं के रूप में हर्षकुंजर उपाध्यायकृत सुमित्रचरित्र और अज्ञातकतृक सुमित्रकथा मिलती हैं । रूपसेनकथा -- इसमें दान के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए रूपसेन और कनकावती की कथा दी गई है। इस कथानक पर अनेक कृतियाँ मिलती हैं । १. जिनरत्नकोश, पृ० १८६. २. जैन गुर्जर कविभो, भाग १, पृ० ३६८. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १४. ४. वही. ५. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ४७५; भाग २, पृ० १६५. ६. जिनरत्नकोश, पृ० १४; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९२४, ७. जैन गुर्जर कविओो, भाग १, पृ० २००; भाग २, पृ०९४, २२४. ८- ९. जिनरत्नकोश, पृ० ४४६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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