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कथा-साहित्य
३२१ चाणक्यर्षिकथा-चाणक्य का चरित्र हरिषेण ने बृहत्कथाकोश में और हेमचन्द्राचार्य ने परिशिष्टपर्व में दिया है। उस पर देवाचार्य की उक्त स्वतन्त्र रचना मिलती है । रचनाकाल नहीं दिया गया है ।
मित्रचतुष्ककथा-स्वदारसन्तोषव्रत के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए सुमुखनृपादिमित्रचतुष्ककथा अपरनाम मित्रचतुष्ककथा की रचना ५१७ श्लोकों में तपागच्छीय सोमसुन्दरसूरि के शिष्य मुनिसुन्दरसूरि ने सं० १४८४ में की है। इसका संशोधन लक्ष्मीभद्रसूरि ने किया था।
किन्हीं संयमरत्नसूरि ने भी मित्रचतुष्ककथा' (ग्रन्थान १६३१) की रचना की है।
उक्त व्रत के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए पं० रामचन्द्रगणि ने ११ सर्गों का एक सुमुखनृपतिकाव्य सं० १७७० में रचा है। इस काव्य की एक त्रुटित प्रति प्राप्त हुई है। ___ . धनदेव-धनदत्तकथा-इसे धनदत्तकथा, धनधर्मकथा भी कहते हैं। सुपात्र में भुक्तिदान से पाप दूर होकर सम्पत्ति मिलती है । इस बात को बतलाने के लिए धनदेव और धनदत्त की कथा दी गई है ।
इस पर सर्वप्रथम कृति तपागच्छ के मुनिसुन्दर की रचना ४४० संस्कृत श्लोकों में मिलती है। रचना में सं० १४८४ दिया गया है। दूसरी रचना तपागच्छीय अमरचन्द्र की है। अमरचन्द्र का समय १७वीं शती का उत्तरार्ध है। इनकी गुजराती रचनाएँ कुलध्वजकुमार ( सं० १६७८) और सीताविरह (सं० १६७९ ) मिलती हैं।"
१. जिनरत्नकोश, पृ० १२२. २. वही, पृ० ३०१, ४४७; जैन आत्मानन्द सभा, ग्रन्यांक ७५, भावनगर;
गुजराती अनुवाद भी वहीं से सं० १९७९ में प्रकाशित. ३. वही. ४. श्रमण, वर्ष १९, अंक ८, पृ० ३०-३, में श्री अगरचन्द नाहटा का लेख
'पं० रामचन्द्ररचित सुमुखनृपति-काव्य'. ५-६. जिनरत्नकोश, पृ० १८६, १८७. ७. जैन गुर्जर कविभो, भाग १, पृ० ५०७, ५०८. .
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