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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास साहित्य, ब्राह्मण-जैन-बौद्ध साहित्य, संस्कृत साहित्य, प्राकृत साहित्य आदि । इस व्यापक अर्थ में भी उपाधियों के द्वारा साहित्य के अर्थ का उत्तरोत्तर संकोच किया गया है। पर साहित्यकार, साहित्याचार्य आदि शब्दों में साहित्य का प्रयोग अति संकुचित और एक विशिष्ट दिशा की ओर हुआ है। यहाँ साहित्य लेखक के व्यक्तित्व का प्रकाशन करता है। साहित्य केवल सिद्धान्त, दर्शन, तर्क आदि ज्ञानात्मक और गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि विज्ञानात्मक ही नहीं अपितु संवेगात्मक, रागात्मक और कल्पनात्मक भी होता है। साहित्यकार या साहित्याचार्य की दृष्टि से साहित्य उन ग्रन्थों में नहीं है जो स्थायी बौद्धिक रुचि के तथ्यों और सत्यों से व्याप्त हैं अपितु उनमें है जो स्वयं ही स्थायी रुचि के हैं। इस प्रकार के साहित्य में तीन तत्त्व प्रमुख रूप से दिखाई पड़ते हैं : १. जीवन और जगत् की प्रखर अनुभूति, २. साहित्यकार का संवेगसंवलित व्यक्तित्व और ३. ललित-प्रेरक शाब्दिक अभिव्यक्ति । दूसरे शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है कि जीवन और जगत् के प्रखर अनुभवों की संवेगसंवलित शाब्दिक अभिव्यक्ति साहित्य है। ___ अंग्रेजी में 'लिटरेचर' और उर्दू में 'अदब' शब्द साहित्य के अर्थ को द्योतित करते हैं। अंग्रेजी का लिटरेचर तो Letters से बना है। तदनुसार समस्त अक्षर ज्ञान का विस्तार ही साहित्य है। पर उसके व्यापक अर्थ को संकुचित करते हुए ब्रिटेनिका विश्वकोष में Literature का अर्थ 'The best expression of the best thoughts reduced to writing' स्वीकार कर उत्कृष्ट विचार, उत्कृष्ट अभिव्यक्ति-संयत लेखन में साहित्य माना गया है। उर्दू में कोमलता, कला, शिष्टता और अदा को अधिक महत्त्व मिला है अतः ‘अदब' शब्द साहित्य के लिए प्रयुक्त हुआ है।
काव्य-संस्कृत साहित्य शास्त्र में उपर्युक्त साहित्य का पर्यायवाची शब्द काव्य है क्योंकि सुदीर्घकाल तक साहित्य सृजन कविता में ही होता रहा है । आचार्य भामह ने (६ठी श०) 'शब्दार्थों सहितौ काव्यम्" कहकर शब्द और अर्थ के साहित्य ( सम्मेलन ) को काव्य माना है और बाद में इसको परिभाषा करते हुए पंडितराज जगन्नाथ ने कहा है-'रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्'। इस परिभाषा में रमणीय अर्थ और शब्द इन दोनों के द्वारा काव्य
१. काव्यालंकार. २. रसगंगाधर.
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