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________________ प्रास्ताविक तथा अनेक जैनेतर कथाग्रन्थों - पंचतंत्र, वेतालपंचविंशतिका, विक्रमचरित, पंचदण्डछत्र प्रबन्ध आदि का प्रणयन किया। इतना ही नहीं, उनकी उदार साहित्य सेवा से प्रभावित हो अन्य धर्म और सम्प्रदाय के लोग उनसे अभिलेख साहित्य का निर्माण कराकर अपने स्थानों में उपयोग करते थे । उदाहरणार्थ चित्तौड़ के मोकलजी मन्दिर के लिए दिगम्बराचार्य रामकीर्ति ( वि० सं० १२०७ ) से प्रशस्ति लिखायी गई थी । इसी तरह राजस्थान की सुन्ध पहाड़ी के चामुण्डा देवी के मन्दिर के लिए बृहद्गच्छीय जयमंगलसूरि से और ग्वालियर के कच्छवाहों के मन्दिर के लिए यशोदेव दिगम्बर से और गुहिलोत वंश के घाघसा और चिर्वा स्थानों के लिए रत्नप्रभसूरि से शिलालेख लिखाये गये थे । ' A इस तरह हम इस आलोच्य युग में ( पाँचवीं से अब तक ) जैन काव्य साहित्य के निर्माण में अनेक प्रकार की प्रेरणाएँ देखते हैं उनमें से कुछ प्रमुख हैं— ( अ ) धर्मोपदेश और धार्मिक भावना, ( आ ) गच्छीय अनुयायियों का अनुरोध, १९ (इ) गच्छीय स्पर्धा, (ई ) ऐतिहासिक और समसामयिक प्रभावक पुरुषों के आदर्श जीवन का चित्रण करने की प्रेरणा, ( उ ) जैनेतर महाकवियों और काव्यों की समकक्षता या शैली के अनुकरण की भावना, (ऊ) धार्मिक उदारता, निष्पक्षता एवं सहिष्णुता । भारतीय काव्य - साहित्य और जैन काव्य - साहित्य : साहित्य - 'साहित्य' शब्द सहित से बना है । साहित्य में सामूहिकता का भाव है। इसमें शब्द और अर्थ के सहभाव द्वारा इस लोक, पर लोक, मित्र, शत्रु सज्जन, दुर्जन सभी के समान हित का प्रतिपादन होता है । साहित्य शब्द का प्रयोग व्यापक और संकुचित दोनों अर्थों में होता है । कुछ उपाधियों के साथ वह व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है, जैसे भारतीय दि० जै० प्र० ), १. जैन शिलालेख संग्रह, तृतीय भाग की प्रस्तावना ( मा० बम्बई, १९५७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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