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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास प्रभावक व्यक्ति की प्रशंसा या इतिवृत्त लिखा गया जिन्होंने जैनधर्म की प्रभावना के लिए अपना तन, मन और धन लगा दिया था। सिद्धराज जयसिंह, परमाईत कुमारपाल, महामात्य वस्तुपाल, जगडूशाह और पेथडशाह आदि उदारमना धर्मपरायण व्यक्ति थे जो किसी भी देश, समाज, जाति के लिए प्रतिष्ठा की वस्तु थे। जैन-साधुओं ने उनके जैनधर्मानुकूल जीवन से प्रभावित होकर उन्हें अपने काव्यों का नायक बनाया और उनकी प्रशस्तियाँ लिखी। आचार्य हेम. चन्द्र ने कुमारपाल के वंश की कीर्ति-गाथा में 'द्वयाश्रयकाव्य' का प्रणयन किया, बालचन्द्रसूरि ने वस्तुपाल के जीवन पर 'वसन्तविलास' एवं उदयप्रभसूरि ने 'धर्माभ्युदय' काव्य की रचना की। इसी तरह प्रभावक आचार्यों और पुरुषों के नाम लघु निबन्धों के रूप में प्रबन्धसंग्रह, प्रबन्धचिन्तामणि, प्रभावकचरित आदि लिखने की प्रेरणा मिली। ये कृतियाँ निकट अतीत या समसामयिक ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन पर आधारित होने से तत्कालीन इतिहास जानने के लिए बड़ी ही उपयोगी हैं। (उ) अन्य महाकवियों की शैली आदि का अनुकरण-संस्कृत साहित्य की कतिपय ख्यातिप्राप्त काव्य-कृतियों से प्रेरणा पाकर भी जैन कवियों ने उनके अनुकरण पर या उस शैली में अनेक काव्यों की रचना की। इस तरह हम देखते हैं कि बाण की कादम्बरी की शैली पर धनपाल ने 'तिलकमंजरी' और ओडयदेव वादीभसिंह ने 'गद्य चिन्तामणि' और 'किरातार्जुनीय' और 'शिशुपालवध' की शैली पर हरिचन्द्र ने 'धर्मशर्माम्युदय' और मुनिभद्रसूरि ने 'शान्तिनाथचरित्र' और वस्तुपाल ने 'नरनारायणानन्द' तथा जिनपाल उपाध्याय ने 'सनत्कुमारचरित' जैसे प्रौढ़ काव्यों की रचना की। इन रीतिबद्ध शास्त्रीय महाकाव्यों की रचना के पीछे कालिदास, भारवि, बाण आदि महाकवियों की समकक्षता प्राप्त करने या वैसा यश प्राप्त करने तथा विद्वत्ता-प्रदर्शन की भावना झलकती-सी लगती है। (ऊ) धार्मिक उदारता, निष्पक्षता एवं सहिष्णुता-साहित्य-सेवा के क्षेत्र में जैनाचार्यों की नीति निष्पक्ष तथा धार्मिक उदारता से प्रेरित थी। उन्होंने अनेक कृतियाँ इन भावनाओं से प्रेरित होकर भी लिखी और पढ़ीं और उनका संरक्षण किया है। इस तरह हम देखते हैं कि अमरचन्द्रसूरि ने वायडनिवासी ब्राह्मणों की प्रार्थना पर 'बालभारत' की तथा नयचन्द्रसूरि ने 'हम्मीरमहाकाव्य' की रचना की। माणिक्यचन्द्र ने काव्यप्रकाश पर संकेत टीका लिखी तथा अनेक जैनेतर महाकाव्यों पर जैन विद्वानों ने प्रामाणिक टीकाएँ लिखी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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