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________________ মানাধিক धिकारियों के संरक्षण में जिनसेन और गुणभद्र ने महापुराण, उत्तरपुराण की, कुमारपाल के गुरु हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की तथा वस्तुपाल के आश्रय पर पश्चात्कालीन कई आचार्यों ने अनेक प्रकार से काव्य-साहित्य की सेवा की। अनेकों काव्यग्रन्थों में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रेरणाओं का साभार उल्लेख भी मिलता है। (इ) गच्छीय स्पर्धा-यद्यपि त्यागी वर्ग को राज्याश्रय और धनिक वर्ग का आश्रय प्राप्त था तथापि उन्हें धन की इच्छा नहीं थी । उनसे प्राप्त सुविधा का उपयोग वे अपनी गच्छीय प्रतिष्ठा और साहित्य-निर्माण में करते थे। काल की दृष्टि से पाँचवीं से दसवीं शताब्दी तक काव्यग्रन्थों का निर्माण उतनी तीव्र गति और प्रचुर मात्रा से नहीं हुआ जितनी कि ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दी तक । दसवीं शताब्दी के पूर्व यदि कई विशाल एवं प्रतिनिधि रचनाएँ लिखी गई थीं, तो दसवीं शताब्दी के बाद तीन सौ वर्षों में यह संख्या बढकर सैकड़ों की तादाद तक पहुँच गई । जैन विद्वानों में मानो उस समय कथा-साहित्य' की रचना करने में परस्पर बड़ी स्पर्धा हो रही थी। अमुक गच्छवाले अमुक विद्वान् ने अमुक नाम का कथाग्रंथ बनाया है, यह जानकर या पढ़कर दूसरे गच्छवाले विद्वान् भी इस प्रकार के दूसरे कथाग्रन्थ बनाने में उत्सुक होते थे। इस रीति से चन्द्रगच्छ, नागेन्द्रगच्छ, राजगच्छ, चैत्रगच्छ, पूर्णतलगच्छ, वृद्धगच्छ, धर्मघोषगच्छ, हर्षपुरीयगच्छ आदि विभिन्न गच्छ, जोकि इन शताब्दियों में विशेष प्रसिद्धि पाये थे और प्रभावशाली बने थे, इन प्रत्येक गच्छ के विशिष्ट विद्वानों ने इस प्रकार के कथाग्रन्थों की रचना करने के लिए सबल प्रयत्न किये। इस युग में एक ही पीदी के विभिन्न गच्छीय दो-दो, तीन-तीन विद्वानों ने तिरसठ शलाका महापुरुषों के चरित्रों तथा व्रत, मंत्र, पर्व, तीर्थमाहात्म्य प्रसंगों को लेकर एक ही नाम की दो-दो, तीन-तीन रचनाएँ लिखी । लोककथा, नीतिकथा, परीकथा तथा पशु-पक्षी आदि हजारों कथाओं को लेकर इन्होंने विशालकाय कथाकोष ग्रंथ भी लिखे। (ई) ऐतिहासिक और समसामयिक प्रभावक पुरुषों के मादर्श जीवनयद्यपि जैन कवि धनादि भौतिक कामनाओं से परे थे फिर भी कथात्मक साहित्य के अतिरिक्त जैन विद्वानों ने युग की परिणति के अनुकूल ऐतिहासिक और अर्धऐतिहासिक कृतियों की रचना की। इन कृतियों में प्रायः ऐसे ही राजवंश या १. प्राकृत में कथा और काव्य प्रायः एक अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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