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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस कथा पर एक अज्ञातकर्तृक रचना मिलती है ।' एक ज्ञातकर्तृक रचना के रचयिता तपागच्छ के सोमसुन्दरसूरि के शिष्य जिनकीर्ति हैं।' इसका जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है। इस कथा को श्रीपाल-गोपालकथा' नाम से भी कहा गया है।
कृतपुण्यचरित-सुपात्र दान को लेकर कृतकर्मनृपतिकथा' तथा कृतपुण्य सेठ या कयवन्ना सेठ की कथा कही गई है। कृतपुण्य की कथा कथाकोषप्रकरण (जिनेश्वरसूरि ) तथा धर्मोपदेशमालाविवरण ( जयसिंहसूरि ) में आई है। इस पर स्वतंत्र रचनाएँ भी मिलती हैं।
पहली रचना जिनपतिसूरि के शिष्य पूर्णभद्रगणि ने जिनपति के पट्टधर जिनेश्वर के शासनकाल में सं० १३०५ में की थी।
द्वितीय रचना कृतपुण्यकथा अपरनाम कयवन्नाकथा अज्ञातकर्तृक का उल्लेख मिलता है।
तृतीय रचना बीसवीं सदी में विजयराजेन्द्रसूरि ने पंचतंत्र की शैली में गद्यात्मक रूप में लिखो है। बीच-बीच में कहानियों को जोड़ने के लिए श्लोक उद्धत हैं। इसकी रचना सं० १९८५ में हुई है।
पापबुद्धि-धर्मबुद्धिकथा-भावात्मक व कल्पित पापबुद्धि राजा और धर्मबुद्धि मंत्री के माध्यम से पाप और धर्म के महत्त्व को समझाने के लिए उक्त कथा की कल्पना की गई है। इस कथा को अन्य नामों से भी प्रकट किया गया है यथा कामघटकथा, कामकुम्भकथा और अमरतेजा-धर्मबुद्धिकथा । इनमें से कुछ के कर्ता ज्ञात हैं और अधिकांश के कर्ता अज्ञात हैं।
ज्ञातकर्तृक रचनाओं में हीरविजयसन्तानीय मानविजय के शिष्य जयविजय ने पापबुद्धि-धर्मबुद्धिकथा' अपरनाम कामघटकथा की रचना की। जयविजय ने
१-३. जिनरत्नकोश, पृ० २४८, ३९६; आत्मानन्दजय ग्रन्थमाला, दभोई, सं०
१९७६; जे० हर्टेलकृत जर्मन अनुवाद, लाइपजिग, १९१७. १. वही, पृ. ९५. ५. वही. ६. राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय, खुडाला ( मारवाड़), सं० १९८८. ७.९. जिनरत्नकोश, पृ० १४, ८४, २४३, हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९०९;
मास्टर उमेदचन्द्र रायचन्द्र, पांजरापोल, अहमदाबाद; इसका परिवर्धित रूप भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य समिति, आहोर (मारवाड़) से प्रकाशित हुमा है।
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