SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ३१० चरितों को लेकर तपागच्छीय बुद्धिसागर के शिष्य अजितसागर ने दो रचनाएँ की हैं। पहली रचना यशोदेव के उक्त कथाकोश रूपी ग्रन्थ से कथानक लेकर की गई १३ सर्गों की बृहती रचना है।' इसमें २४२५ पद्य हैं। इसमें सभी रसों का प्रतिपादन हुआ है पर करुण रस की प्रधानता है । भीमसेन अन्तरायकर्म की प्रबलता से अनेक कष्ट सहता है और मुनिदान के प्रभाव से तथा वर्धमानतप के अपने राज्य को पा लेता है । फिर तपस्या कर मोक्षपद पाता है । प्रभाव द्वितीय रचना में २६८ पद्य हैं जो शत्रुञ्जयमाहात्म्य के अनुसार हैं। इस कथा का निर्देश हमने उक्त माहात्म्य के प्रसंग में किया है । १७वीं शती का यशोविजयकृत एक आर्षभीमचरित्र भी उपलब्ध हुआ है । चम्पकश्रेष्ठिकथानक - यह एक संस्कृत गद्य में लिखी गई अन्य कथाकोषों तथा प्रबंधचिन्तामणि समागत चम्पश्रेष्ठि की साथ में, उसके भीतर तीन और सुन्दर उपाख्यान दिये गये पुरुषार्थ के महत्त्व को सूचित करते हैं । संक्षेप में कथा इस प्रकार है : चम्पानगरी के एक सेठ को थी । गोत्रदेवी ने बतलाया कि उसका उत्तराधिकारी दासी के बालक होगा । इस पर उस भवितव्यता को बदलने का वह प्रयत्न करने लगा । उसने दासी को खोजकर उसे गर्भिणी हालत में मार डाला पर भाग्यवश उसका बच्चा जीवित निकला और दूसरों द्वारा पाला गया। बड़ा होने पर सेठ को पता लगता है और वह उसे मार डालने के लिए एक गुप्त पत्र लिखता है जो कि उसकी पुत्री तिलोत्तमा द्वारा विवाह - पत्र के रूप में परिणत हो जाता है । इस तरह चम्पक उस सेठ का जामाता बन जाता है । फिर भी सेठ उसे मार डालना चाहता है पर सेठ ही मारा जाता है और चम्पक उसका उत्तराधिकारी बन जाता है। कथा' है जिसमें कथा दी गई है । हैं जो भाग्य और Jain Education International कोई सन्तान न गर्भ से उत्पन्न १. अजितसागरसूरि ग्रन्थमाला ( सं० १४-१५ ), प्रान्तिज ( गुजरात ). २. जिनरत्नकोश, पृ० ३२१; इसका अंग्रेजी और जर्मन अनुवाद हर्टेल ने सन् १९२२ में लीपजिग से निकाला है। इसका एक संस्करण विद्याविजय यंत्रालय से सन् १९१५ में निकला है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy