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________________ कथा-साहित्य ३११ इस कथा में तीन कहानियाँ शामिल की गई हैं। प्रथम कथा रावण की है जो व्यर्थ में भाग्यचक्र को चुनौती देता है। दूसरी कथा में पुरुषार्थ द्वारा विधिलिखित बात भी बदली गई है और तीसरी कथा एक वणिक की है जो अब तक लोगों को ठगता रहा है पर अन्त में एक वेश्या द्वारा ठगा जाता है । यह अन्तिम कथा बड़ी हास्यपूर्ण है | यह एक ऐसी कहानी है जो पूर्व एवं पश्चिम दोनों देशों में प्रसिद्ध है, जिसे ब्राह्मण एवं बौद्ध साहित्य में भी देखते हैं । रचयिता एवं रचनाकाल - इसके प्रणेता तपागच्छीय सोमसुन्दरसूरि के शिष्य जिनकीर्ति हैं । इनका समय १५वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है । ग्रन्थकार की अन्य कृतियाँ दानकल्पद्रुम अपरनाम धन्यशालिचरित्र ( वि० सं० १४९७ ), श्रीपाल - गोपालकथा, पंचजिनस्तव, नमस्कारस्तव ( वि० सं० १४९४ ), श्राद्धगुणसंग्रह ( वि० सं० १४९८ ) हैं । चम्पकश्रेष्ठी की कथा पर तपागच्छीय जयविमलगणि के शिष्य प्रीतिविमल की रचना' (सं० १६५६ ) तथा जयसोम की रचना भी उपलब्ध होती है । अघटकुमार कथा — यह चम्पकश्रेष्ठी के समान ही लौकिक कथा है जिसमें पत्रविनिमय द्वारा कथानायक अघटकुमार के मृत्यु से बचने की घटना आई है। इस पर दो अज्ञातकर्तृक पद्यात्मक कृतियाँ मिलती हैं। जिनकीर्तिकृत अनुपकुमारकथा संस्कृत गद्य में है । इसका जर्मन अनुवाद डा० कुमारी चास क्राउस ने सन् १९२२ में किया है । उपर्युक्त रचना का काल नहीं दिया गया है । यह अनुमानतः १५-१६वीं शती की रचना है । मूलदेवनृपकथा - मूलदेव नृप की लोकसाहित्य जगत् की एक कथा को सुपात्रदान के उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया गया है । मूलदेव पाटलिपुत्र का एक अति रूपवान् राजकुमार था । उसे जुआ खेलने का व्यसन था । उसके पिता ने उसे निकाल दिया | उज्जैनी पहुँचकर वह गुलिका विद्या से बौने का रूप धारण कर मनोहर गीत गाते हुए रहने लगा । उस पर देवदत्ता नामक वेश्या आसक्त हो गई । वेश्या की मां ने उसे कपट प्रबंध से वहाँ से भागने को बाध्य किया । भूखे १. जिनरत्नकोश, पृ० १२१; जमनाभाई भगुभाई, अहमदाबाद, १९१६. २. वही, पृ० १२१. ३-५. वही, पृ० १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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