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________________ कथा - साहित्य ३०७ इस कथा में यदि पर्वतिथि- पालन विधि को न जोड़ें तो यह बिल्कुल लौकिक कथा है और सुप्रसिद्ध हिन्दी काव्य जायसीकृत पद्मावत की कथा का मूलाधार सिद्ध होती है । डा० हीरालाल जैन ने इसका विश्लेषण कर इस बात को भली-भांति सिद्ध कर दिया है।' उक्त कथानक को लेकर संस्कृत - प्राकृत में जैन कवियों ने ३-४ रचनाएँ लिखी हैं। सबसे प्राचीन तपागच्छीय जयतिलकसूरि के शिष्य दयावर्धनमणि की कृति है जिसे 'रत्नशेखररत्नवतीकथा' या 'पर्वविचार' या 'पर्वतिथिविचार' कहा गया है । इसमें ३८० श्लोक हैं और रचना सं० १४६३ है । दयावर्धन की अन्यकृति हंसकथा भी है । एतद्विषयक दूसरी रचना रत्नशेखरसूरि की है । ये रत्नशेखर कौन हैं, कहना कठिन है । एक रत्नशेखर १५वीं शती के पूर्वार्ध में और दूसरे १६वीं शती के प्रारंभ में हु हैं 1 तीसरी रचना प्राकृत में 'रयणसेहरीकहा' है जिसका ग्रन्थाग्र ८००० श्लोकप्रमाण है । इसकी रचना तपागच्छीय जयचन्द्रसूरि के शिष्य जिनहर्षगणि ने की है । इन्होंने यह कथा चित्रकूट में रची थी। इस कथा का रचना संवत् ज्ञात नहीं पर जिन हर्षगणि की अन्य कृतियाँ उपलब्ध हैं उनमें वस्तुपालचरित्र की रचना सं० १४९७ में और विंशतिस्थानकसंग्रह सं० १५०२ में लिखी गई है । इसकी प्राचीन हस्तलिखित प्रति वि० सं० १५१२ की है अतः इसकी रचना उससे पूर्व को होनी चाहिये । कुछ अज्ञातकर्तृक रत्नशेखरकथाएँ भी हैं, उनमें से एक की प्राचीन हस्तलिखित प्रति सं० १५५३ की मिली है । १. मध्यभारती पत्रिका, संख्या २, डा० जैन का अंग्रेजी लेख, 'सोर्सेज आफ पद्मावत'. २. जिनरत्नकोश, पृ० ३२८; लब्धिविजयसूरीश्वर ग्रन्थमाला, भावनगर, सं० २०१४. ३. वही. ४. वही, पृ० ३२४; जंन विविध साहित्य शास्त्रमाला ( सं० १० ), वाराणसी, १९१८; जैन आत्मानन्द सभा (सं० ६३), भावनगर, सं० १९७४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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