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________________ कथा-साहित्य ३०५ फल', यात्रार्थ जाते हुए पुत्र रत्नचूड को पिता द्वारा शिक्षा जिसमें व्यावहारिक बुद्धि और अन्धविश्वासों का विचित्र संमिश्रण है', यात्रार्थ जाते हुए शुभ शकुनों का उल्लेख', भाग्यशाली पुरुष के शरीर में ३२ तिलादि चिह्नों की गणना आदि का समावेश किया गया है । यात्रा प्रसंग में रत्नचूड धूर्तों की नगरी अनीतिपुर नगर में पहुँचता है जहाँ अन्यायी राजा राज्य करता है जिसका अविचार मंत्री तथा अशांति पुरोहित था । धूर्तों की दुनिया में रत्नचूड को अनेकों चमत्कारी घटनाओं का सामना करना पड़ा । कहानी बड़ी ही चतुरतापूर्ण एवं मनोरंजक है । कहानी के बीच में रोहक नामक बालक एवं ब्राह्मण सोमशर्मा के पिता की कहानी आविष्कृत की गई है । रोहक पालि महाउम्मग्ग जातक में वर्णित महासेध नामक पुरुष के समान ही अनेक असंभव कार्यों को अपने बुद्धिवल से कर लेता है । सोमशर्मा ब्राह्मण का पिता हवाई किले बनाता था । कथानकों में मौके-मौके पर उपदेशात्मक पद रखे गये हैं जो बड़े रोचक हैं । रत्नचूड अपने बुद्धिकौशल से धन कमाकर लौटता है । उसे मुनि धर्मघोष पूर्वजन्म में दिये गये दान का प्रभाव बताते हैं । फिर अनीतिपुर ( धूर्त नगरी ) की प्रत्येक घटना को रूपक के ढंग से इस संसार में घटाते हुए कथा की समाप्ति होती है ।" यह कथा देवेन्द्रसूरिकृत प्राकृत रत्नचूडकथा से नामसाम्य होने पर भी सर्वथा भिन्न है | रचयिता और रचनाकाल - इसके कर्ता तपागच्छीय रत्नसिंह के शिष्य ज्ञान - सागर हैं । इनका परिचय इनकी अन्यतम कृति विमलनाथचरित के प्रसंग में १. श्लोक सं० २२-५७. २. श्लोक सं० ९५-१३६. ३. श्लोक सं० १११-११४. ४. इलोक सं० ४४५-४९१. ५. श्लोक सं० २१८-३०९. ६. श्लोक सं० ५३०-५३८. ७. इसे तिलकसुन्दरी - रत्नचूडकथानक भी कहते हैं । २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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