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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दीक्षा के बाद सभा में राजा उनसे पूछता है कि उनके सुख का श्रेय किसे है ? सुरसुन्दरी ने पिता को और मयना ने अपने कर्म को बतलाया। राजा पहली से प्रसन्न हो उसका विवाह शंखपुर नरेश अरिमर्दन से कर देता है और दूसरी से ऋद्ध हो कोढ़ी राजपुत्र श्रीपाल से । ___ श्रीपाल चम्पापुर का राजपुत्र था। बाल्यकाल में ही उसके पिता के मर जाने के कारण मन्त्री ने और उससे छीनकर चाचा अजितसेन ने राज्य सम्हाला और माँ-बेटे को मारने का षड्यंत्र किया जिससे दोनों भागकर ७०० कोढ़ियों के गाँव में शरण लेते हैं। वहाँ श्रीपाल भी कोढ़ी हो जाता है। माता उपचार के लिए उसे उज्जयिनी ले गई। कोढ़ियों ने श्रीपाल को अपना मुखिया चुन लिया था और उसके विवाह के लिए वे लोग राजा से मयनासुन्दरी की माँग करते हैं । राजा उससे विवाह कर देता है। मयनासुन्दरी इसे अपना कर्मफल मानती है
और उसके निवारणार्थ सिद्धचक्र की पूजा करती है और सब कोढ़ी ठीक हो जाते हैं।
कुछ समय वहाँ रहकर श्रीपाल पत्नी से अनुमति लेकर यश और सम्पत्ति अर्जन के लिए विदेश जाता है। वहाँ अनेकों राजकुमारियों से विवाह करता है. व्यापार में सहयोगी धवल सेठ द्वारा धोखे से समुद्र में गिराये जाने पर भी बच जाता है तथा सेठ के अनेक कपट-प्रपंचों से बचता हुआ सम्पत्ति-विपत्ति के बीच डावांडोल हालत से पार होता हुआ अपनी पत्नियों सहित उज्जैन लौट आता है। फिर अपनी माँ और पत्नी ( मयना) से मिलकर अंगदेश पर आक्रमण करता है। चाचा अजितसेन को हराता है जो मुनि हो जाता है। श्रीपाल राजसुख भोगता है । एक दिन उन्हीं मुनि से अपने पूर्वजन्म की कथा सुनकर मालूम करता है कि वह कुछ काल कर्मफल भोग ९वे जन्म में मोक्ष प्राप्त करेगा।
दिगम्बर परम्परा के कथानक के अनुसार राजा पहुपाल की एक रानी की दो पुत्रियाँ सुरसुन्दरी और मयणा थीं। दोनों की शिक्षा अलग-अलग होती है। सुरसुन्दरी का विवाह कौशाम्बी के राजा शृंगारसिंह से होता है और मयणा का कोढ़ी श्रीपाल से (श्रीपाल को राजा बनने के बाद कोढ़ हुआ था) जो कि कोढ़ के कारण १२ वर्ष से प्रवास में था। मयणा सिद्धचक्रविधि से उसके कोढ़ का निवारण करती है। इसके बाद दो विद्याएँ प्राप्तकर श्रीपाल विदेशयात्रा करता है । वहाँ समुद्र में पतन आदि कपटप्रबन्धों से पार होकर क्रमशः ४००० राजकन्याओं से विवाह करता है । पीछे लौटकर अपने चाचा वीरदमन से राज्य छीन सुखभोग करता है। पश्चात् एक मुनि से पूर्वभव की बातें सुन मुनि होकर तपस्याकर मोक्ष जाता है।
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