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________________ कथा-साहित्य २९१ चरित को अंकलेश्वर ( भड़ौच ) के चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर में बैठकर रचा था। उक्त काव्य की प्रशस्ति में रचना संवत् दिया हुआ है और कहा गया है कि यह काव्य दया के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए निर्मित हुआ है । ' सं० १६५९ में वादिभूषण के शिष्य ज्ञानकीर्ति ने आमेर के महाराजा मानसिंह ( प्रथम ) के मंत्री नानूगोधा की प्रार्थना पर एक यशोधरचरित बनाया जिसमें ९ सर्ग हैं। इसकी एक प्रति आमेर शास्त्रभंडार में है । सं० १८३९ में खरतर - गच्छीय अमृतधर्म के शिष्य क्षमाकल्याण ने संस्कृत गद्य में यशोधरचरित जैसलमेर में रहकर लिखा था । श्री पालचरित्र - श्रीपाल का चरित्र सिद्धचक्र पूजा ( अष्टाह्निका, नन्दीश्वरपूजा ) अर्थात् नवपद मण्डल के माहात्म्य को प्रकट करनेवाला एक रूढ़ चरित है जिसे थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराएँ मानती हैं । जिस प्रकार दूसरे व्रतों या अधिक चरित्र मिलते हैं उसी प्रकार इसके लिए भी २६ से अधिक रचनाएँ मिलती हैं। 1 अनुष्ठानों के लिए एक से संस्कृत - प्राकृत में मिलाकर यद्यपि उक्त पूजा का उल्लेख पुराना है ओर उसके माहात्म्य के लिए अयोध्या के हरिषेण राजा की कथा जोड़ी गई है, पीछे पोदनपुर के एक विद्याधर नरेश की। पहले नंदीश्वर पूजा मूल रूप में विद्याधर लोक की वस्तु थी पर विद्याधर से अतिरिक्त मानव से भी सम्बन्ध जोड़ने के लिए लोककथासाहित्य से श्रीपाल के चरित्र को धर्मकथा के रूप में गढ़कर तैयार किया गया । श्रीपाल कोई पौराणिक पुरुष नहीं है । इसकी जो कथा मिलती है उसके विश्लेषण से इसकी मुख्य वस्तु ज्ञात होती है : पूर्वजन्म के संचित कर्मों का फल प्रकट करना है पर उनसे त्राण पाने में अलौकिक शक्तियों से भी सहायता मिल सकती है और वह अलौकिक शक्ति है सिद्धचक्र पूजा । कथावस्तु — उज्जैन के राजा प्रजापाल की दो पत्नियाँ हैं, एक शैव और दूसरी जैन । एक की पुत्री सुरसुन्दरी और दूसरी की मयनासुन्दरी । शिक्षा १. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८८, कथामेनां दयासिद्ध्यै वादिचन्द्रो व्यरचत् । २. राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० २११; जिनरत्नकोश, पृ० ३१९. ३. केटेलाग आफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मेनु०, भाग ४ ( लालभाई दलपतभाई ग्र० सं० २० ०), परिशिष्ट, पृ० ८५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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