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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १५३, २३४, १७९, १८०, १७४, १९१, १०९ है । अन्त में १३ पद्यों की एक प्रशस्ति है । इस काव्य का दूसरा नाम दयासुन्दरकाव्य भी दिया गया है । २९० रचयिता और रचनाकाल — इसके कर्ता का नाम पद्मनाभ है जो कायस्थ जाति का था । उसके गुरु जैन भट्टारक गुणकीर्ति ( वि० सं० १४६८-७३ ) थे । उन्हीं के उपदेश से उसने उक्त काव्य लिखा । तत्कालीन कई भक्तों ने उक्त काव्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की थी । अन्त्य प्रशस्ति खण्ड के १० पद्यों में कवि ने अपने आश्रयदाता मंत्री कुशराज का विस्तृत परिचय दिया है । यह कुशराज ग्वालियर के तोमरवंशीय नरेश विक्रमदेव ( वीरमदेव सं० १४५९-१४८३ ) के मंत्रिमण्डल का प्रमुख सदस्य था । इसने गोपाचल पर एक विशाल चन्द्रप्रभ जिनालय बनवाया था । अन्य यशोधरचरितों में भट्टा० सकलकीर्ति के काव्य में ८ सर्ग हैं और परिमाण १००० श्लोक-प्रमाण है । कल्याणकीर्ति की रचना १८५० ग्रन्थाग्र - प्रमाण बतलाई गई है ।' सोमकीर्ति ( सं० १५३६ ) के काव्य में ८ सर्ग हैं । इसकी रचना उन्होंने गोटिली ( मारवाड़ ) में सं० १५३६ में की थी। उन्होंने प्राचीन हिन्दी में भी एक यशोधरचरित रचा है । सोमकीर्ति का परिचय प्रद्युम्नचरित के प्रसंग में दिया गया है । इनकी अन्य कृति सप्तव्यसनकथा भी मिलती है । श्रुतसागरकृत यशोधरचरित में ४ सर्ग हैं श्रुतसागर विद्यानन्दि के शिष्य थे जो मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण के भट्टारक थे । श्रुतसागर बहुत बड़े विद्वान् थे । इन्होंने यशस्तिलकचम्पू पर यशस्तिलक चन्द्रिका टीका लिखी है जो अधूरी है । इनके अन्य ग्रन्थों में तत्त्वार्थवृत्ति एवं श्रीपालचरित उल्लेखनीय हैं । इन्होंने अपने किसी ग्रन्थ में रचना का समय नहीं दिया है, फिर । भी अन्य हुए हैं । प्रमाणों से यह प्रायः निश्चित है कि ये विक्रम की १६वीं शताब्दी में धर्मचन्द्रगणि के शिष्य हेमकुंजर उपाध्याय ने भी एक यशोधरचरित रचा है जिसकी हस्तलिखित प्रति सं० १६०७ की मिलती है। लंकागच्छीय नाननी के शिष्य ज्ञानदास ने भी सं० १६२३ में एक यशोधरचरित रचा था । " पार्श्वपुराण के रचयिता भट्टारक वादिचन्द्र ने भी सं० १६५७ में एक यशोधर १. जिनरत्नकोश, पृ० ३१९. २. राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० ३९-४३. ३. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३७१-३७७. ४. जिनरत्नकोश, पृ० ३१९. ५. वही. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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