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________________ कथा-साहित्य २९३ उक्त दोनों रूपान्तरों में जो समान तथ्य प्रतिफलित होते हैं वे हैं : श्रीपाल का चम्पापुर का राजपुत्र होना, उसे पूर्व कर्मों के फलस्वरूप कोढ़ होना और मयना का भी कर्मफलस्वरूप तथा पिता द्वारा बदले की भावना के कारण विवाह होना, श्रीपाल का घरजवांई न बनकर अपना साहस और पुरुषार्थ दिखाना, समुद्रयात्रा के अनुभव प्रकट करना और यह बताना कि इन कष्टों से मुक्ति का उपाय है सिद्धचक्र पूजा। सिरिवालकहा-श्रीपाल के आख्यान पर सर्व प्रथम एक प्राकृत कृति 'सिरिवालकहा मिलती है जिसमें १३४२ गाथाएँ हैं। उनमें कुछ पद्य अपभ्रंश के भी हैं। प्रथम गाथा में कथा का हेतु दिया गया है : अरिहाइ नवपयाइं झाइत्ता हिययकमलममि । सिरिसिद्धचक्कमाहप्पमुत्तमं किं पि जंपेमि ॥ तेईसवीं गाथा में नवपदों की गणना इस प्रकार दी है : अरिहं सिद्धायरिया उज्झाया साहुणो अ सम्मत्तं । नाणं चरणं च तवो इय पयनवगं मुणेयव्वं ।। इसके बाद उक्त पदों का ९ गाथाओं में अर्थ तथा माहात्म्य की चर्चा है । २८८वीं गाथा से श्रीपाल की कथा दी गई है। यह कथाग्रन्थ कल्पना, भाव एवं भाषा में उदात्त है। इसमें कई अलंकारों का सफलतापूर्वक. प्रयोग किया गया है। कथानक की रचना आर्या और पादाकुलक (चौपाई) छन्दों में की गई है, पर कहीं-कहीं पज्झड़िआ छन्दों का भी प्रयोग किया गया है। रचयिता एवं रचनाकाल-ग्रन्थ के अन्त में कहा गया है कि इसका संकलन वज्रसेन गणधर के पट्टशिष्य व प्रभु हेमतिलकसूरि के शिष्य रत्नशेखरसूरि ने किया। उनके शिष्य हेमचन्द्र साधु ने वि० सं० १४२८ में इसको लिपिबद्ध किया। पट्टावलि से ज्ञात होता है कि रत्नशेखरसूरि तपागच्छ की नागपुरीय जिनरत्नकोश, पृ. ३९६, देवचन्द्र लालभाई पुस्तक० (६३), बम्बई, १९२३. श्री वाडीलाल जे० चोकसी के अनुसार इस कथा का आविष्कार सर्वप्रथम रत्नशेखरसूरि ने ही किया है। इस कथन का समर्थन उक्त ग्रन्थकार के सिद्धचक्रयन्त्रोद्धार के वर्णन से होता है। सिरिवज्जसेण गणहर पट्टप्पड हैमतिलयसूरीणं । सीसेहिं रयणसेहरसुरीहिं इमा हु संकलिया ॥ १३४० ॥ तस्सीस हेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स नरसंमि । चउदस अट्ठावीसे लिहिया गुरुभत्तिकलिंएणं ॥ १४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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