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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
व्यक्ति के लिए सुनाता है न कि अभयमती, अभयरुचि और मारिदत्त
के लिए |
परवर्ती रचनाओं में यशोधर - कथा का विकास अनेक आधारों से किया गया प्रतीत होता है ।
यहाँ उक्त कथाविषयक चरितों का परिचय दिया जाता है
१.
यशोधरचरित -- यशोधर के चरित्र पर सम्भवतः यह पहली स्वतंत्र रचना है । इसका सर्वप्रथम उल्लेख उद्योतनसूरि ( सं० ८३५ ) ने अपनी कुवलयमाला में इस प्रकार किया है :
सत्तूण जो जसहरो जसहरचरिएण जणवए पयडो । कलिमलपभंजणो चिय पभंजणो आसि रायरिसी ।। ४० ।।
अर्थात् जो शत्रुओं के यश का हरण करनेवाला था और जो यशोधरचरित के कारण जनपद में प्रसिद्ध हुआ, वह कलि के पापों का प्रभंजन करनेवाला प्रभंजन नाम का राजर्षि था ।
मुनि वासवसेन (वि० सं० १३६५ से पूर्व ) ने भी अपने यशोधरचरित' में लिखा है :
प्रभंजनादिभिः पूर्वं हरिषेणसमन्वितैः । यदुक्तं तत्कथं शक्यं मया बालेन भाषितुम् ॥
अर्थात् हरिषेण-प्रभंजनादि कवियों ने पहले जो कुछ कहा है, वह मुझ बालक से कैसे कहा जा सकता है ।
भट्टारक ज्ञानकीर्ति ( वि० सं० १६५९ ) ने अपने यशोधरचरित' में अपने पूर्ववर्ती जिन यशोधरचरित - कर्ताओं के नाम दिये हैं उनमें प्रभंजन का भी
१. डा० पी० एल० वैद्य ने प्रभञ्जन के यशोधरचरित को उक्त विषयक ग्रन्थों में सबसे प्राचीन माना है ( जसहरचरिउ, कारंजा, १९३१, भूमिका, पृ० २४ प्रभृति ); डा० आ० ने० उपाध्ये, कुवलयमाला, भाग २, टिप्पण ३१, पृ० १२६.
२. कुवलयमाला (सिं० जै० प्र० सं० ४५ ), पृ० ३.
३. पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ४२१.
४. डा० क० च० कासलीवाल, राजस्थान के जैन सन्त: व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० २११; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ११० और ४२१.
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