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कथा-साहित्य
२८५ ( या सेही), मगर मच्छ, बकरी-बकरी-पुत्र, भैंसा-बकरा तथा दो मुर्गे के रूप में हुए । एक समय मुनि का उपदेश सुनकर उन दोनों मुर्गों को जातिस्मरण हुआ
और वे ऊँची बांग देने लगे। राजा यशोधर के पुत्र (तत्कालीन नरेश) ने अपनी रानी को अपना शब्दवेधित्व दिखाने के लिए उन मुर्गों पर बाण छोड़ा जिससे उन दोनों की मृत्यु हो गई और उन्होंने उसी नरेश के पुत्र-पुत्री युगल-अभयरुचि और अभयमती के रूप में जन्म लिया। __ एक समय नगर के एक जिनालय में सुदत्ताचार्य मुनि आये। राजा ने उन्हें अमंगल स्वरूप जान क्रोध करना चाहा पर एक व्यक्ति से उनका परिचय पाकर तथा उनसे उपदेश सुनकर तथा अपने पितामह, पितामही और पिता आदि का पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनकर यशोधर विरक्त हो गया और साधु हो गया। अभयरुचि और अभयमती ने भी अपने पूर्वजन्मों के हालातों को सुनकर क्षुल्लकव्रत ग्रहण कर लिए। ___ यह सब वृत्तान्त सुनकर मारिदत्त उन क्षुल्लक युगल के गुरु के पास गया
और संसार से विरक्त होकर दीक्षा ले ली। उसके पुत्र ने भी राज्य में हिंसा का निषेध कर दिया।
यह यशोधर-कथानक कुम्भकार-चक्र की भाँति प्रस्तुत किया गया है जो मारिदत्त एवं क्षुल्लक युगल के परस्पर वार्तालाप से प्रारंभ होता है और उन्हीं दोनों के वार्तालाप से समाप्त होता है।'
उपर्युक्त कई रचनाओं में मारिदत्त का आख्यान प्रारम्भ में न देकर ग्रंथान्त में दिया गया है।
उपलब्ध रचनाओं में हरिभद्रकृत 'समराइच्चकहा' में समागत यशोधर की कथा परवर्ती रचनाओं का उपजीव्य रही है। पर उसके पात्र परवर्ती कथाओं में परिवर्तित रूप में मिलते हैं तथा उनमें अनेक घटनाएँ जोड़ दी गई हैं। कथा के नायक-नायिका रूप में हरिभद्र ने यशोधर-नयनावलि नाम दिया है। वहाँ मारिदत्त का आख्यान नहीं है और न चण्डमारी देवी के सम्मुख पूर्व नियोजित नर-बलि की घटना । समराइचकहा में अभयमती और अभयरुचि दोनों अलगअलग देशों के राजकुमार राजकुमारी हैं, कारणवश वैराग्य धारण कर लेते हैं। वहाँ वे भाई-बहिनी रूप में नहीं माने गये। समराइच्चकहा में यशोधर-कथा आत्मकथा के रूप में मिलती है। वहाँ यशोधर अपनी कथा धन नामक
१. देखें, डा० राजाराम जैन का लेख, 'यशोधरकथा का विकास', जैन सिद्धान्त
भास्कर, भाग २५, किरण २, पृ० ६२-६९, आरा, १९५८.
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