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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यशोधरचरित्र की कथा का सार-एक समय राजपुर नरेश मारिदत्त चण्डमारी देवी के मन्दिर में सभी प्रकार के प्राणियों के जोड़े की बलि देने का अनुष्ठान करता है ताकि उसे लोकविजय करनेवाली तलवार प्राप्त हो सके। वहाँ नर-नारी रूप में बलि के लिए दो मुनिकुमार-अभयरुचि और अभयमती ( दोनों सहोदर भाई-बहिन) पकड़ कर लाये गये। वे एक मुनिसंघ के सदस्य ये
और भिक्षा के लिए नगर में आये थे। उन्हें देख राजा मारिदत्त का चित्त करुणा से द्रवित हुआ और उसने उनसे परिचय पूछा। उन दोनों ने अपना इस जन्म का सोधा परिचय न देकर अपने पूर्वभवों की कथा सुनाते हुए अन्त में बतलाया कि वे उस नरेश के भांजा-मांजी हैं। अभयरुचि ने बलि के लिए लाये गये अनेक जीवों को देखकर हिंसा की तीव्र निन्दा की और अपने पूर्वजों से सम्बद्ध, जीवित मुर्गे की नहीं अपितु आटे के मुर्गे का बलिदान करने और उसे खाने के कारण दारुण फलों को जन्मों-जन्मों में भोगने की अद्भुत कथा को इस प्रकार प्रस्तुत किया :
अभयरुचि ने कहा कि यह आठ पूर्वभवों की कथा है। प्रथम भव में वह उजयिनी का यशोधर नाम का राजा था। उसकी रानी एक रात्रि में कुबड़े, कुरूप महावत के गाने को सुनकर उसपर आसक्त हो गई और उससे प्रेम-सम्बंध स्थापित कर रात्रि के पिछले पहर में उससे रमण करने जाने लगी। एकबार रात्रि में राजा ने इस कृत्य को स्वयं आँखों से देखा पर कुल की निन्दा के कारण उन दोनों को नहीं मार सका और चुपचाप सो गया। सुबह बहुत भारी मन और उदासीनता से उसने अपनी माता से भेंट की और उदासीनता का कारण एक दुःस्वप्न बतलाया जिसमें उसने अपनी रानी के दुश्चरित्र का आभास-सा दिया पर वह समझ न सकी और दुःस्वप्न का वारण करने के लिए उसने देवी के लिए बकरी के बच्चे की बलि चढ़ाने को कहा । पर उसने ऐसा करने से इनकार तो किया किन्तु माता के तीव्र अनुरोध पर आटे के मुर्गे की बलि चढ़ाई। फिर भी इस हिंसा और रानी के व्यभिचार के कारण उसका दिल इतना हिल गया कि उसने राज्य परित्यागकर तपस्या करना चाहा। किन्तु इसके पूर्व उससे आग्रह किया गया कि वह देवी का प्रसाद पा ले और उसे और उसकी माता को रानी ने विषमिश्रित लड्डू खिलाकर मार डाला। माता और पुत्र मरकर क्रमशः कुत्ता और मयूर हुए। दोनों संयोगवश उसी महल में इकठे हुए। मयूर ने रानी से संभोग करते हुए कुबड़े की आँख फोड़ देना चाही पर रानी ने उसे अधमरा कर दिया और कुत्ते ने उसे खा लिया। राजपुत्र ने क्रोध में आकर कुत्ते को मार दिया। इस तरह अगले जन्मों में दोनों माता-पुत्र क्रमशः सर्प-नेवला
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