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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सीधे टक्कर में परास्त होता है। मकरध्वज की पत्नियों द्वारा प्राणों की भीख मांगने पर मकरध्वज को शुक्लध्यानवीर ने अपने राज्य की सीमा से हटा दिया ।
मकरध्वज आत्मघातकर देखते ही देखते अनंग होकर अदृश्य हो गया । इसके बाद जिनराज सिद्धसेन की पुत्री मुक्ति से विवाह करने के लिए कर्मधनुष को तोड़कर मोक्षपुर रवाना हो जाते हैं ।
इस कथानक को लेकर मदनपराजय नाम की कई रचनायें लिखी गई हैं। उनमें से हरिदेवकविकृत अपभ्रंश रचना प्रसिद्ध है। उसी के आधार से संस्कृत में नागदेव ने मदनपराजय की रचना की है। जिनरत्नकोश में जिनदेव और ठाकुरदेवकृत अन्य मदनपराजयों का उल्लेख मिलता है ।'
संस्कृत मदनपराजय के रचयिता कवि नागदेव ने ग्रन्थ के अन्त में एक प्रशस्ति दी है जिससे ज्ञात होता है कि वे दक्षिण भारत के थे। वे सोमकुल में उत्पन्न हुए थे। उस कुल में अनेक कवि और वैद्य हुए थे। उनके पिता श्रीमल्लुगि अपभ्रंश मयणपराजयचरिउ के कर्ता के प्रपौत्र थे। उक्त अपभ्रंश रचना में यत्रतत्र भाषा, शैली, विषयवर्णन और प्रसंग-योजना द्वारा परिवर्तनकर नया रूप देकर संस्कृत मदनपराजय चरित की रचना की गई है। इसे लेखक ने इस तरह प्रस्तुत किया है जैसे कोई नाटक हो । पर मदनपराजय न तो नाटक है और न नाटकीय शैली से लिखा गया है। इसमें कवि ने हृदयहारी रूपकों की इतनी योजना की है कि इसे हम रूपकभण्डार कहें तो अत्युक्ति न होगी। इसे कवि ने पंचतन्त्र और सम्यक्त्वकौमुदी की शैली पर लिखा है। इसी से इसमें अनेक सुभाषित और सूक्तियाँ भरी पड़ी हैं।
मदनपराजय का रचनाकाल नहीं दिया गया है पर उसकी एक हस्त० प्रति वि० सं० १५७३ की मिली है। अतः वह उसके पूर्व की रचना होना चाहिए । ___ यशोधरचरित्र-अहिंसा के माहात्म्य को तथा हिंसा और व्यभिचार के कुपरिणामों को बतलाने के लिए यशोधर नृप की कथा प्राचीन काल से जैन कवियों को बहुत प्रिय रही है। इस पर प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश में साधारण से लेकर
1. जिनरत्नकोश, पृ० ३००. २. भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से अपभ्रंश और संस्कृत दोनों मदनपराजय
प्रकाशित हुए हैं। दोनों की भूमिकाएं महत्त्वपूर्ण हैं । डाक्टर हीरालाल जैन ने अपभ्रंश रचना की भूमिका में प्रतीक कथा-साहित्य का अच्छा परिचय दिया है। यह भूमिका कई बातों में बड़ी उपयोगी है।
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