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________________ २८० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रूप दिया गया है और भवचक्र नाटक के वे ही यथार्थ पात्र हैं जिन्हें कवि श्रावकों के आगे खोलकर रखना चाहता है। सिद्धर्षि का कहना है कि पाठकों को आकर्षित करने के लिए उसने रूपक चुना है तथा इसी कारण उसने प्राकृत में ग्रन्थ न रचकर संस्कृत में ग्रन्थ लिखा है। क्योंकि प्राकृत अशिक्षितों के लिए है जबकि शिक्षितों को उनकी मिथ्यामान्यताओं का खण्डन करने के लिए और अपने मत में लाने के लिए संस्कृत उचित है। उनका कहना है कि वह ऐसी संस्कृत लिखेगा जो सवत्र समझने में आवे | यथार्थ में भाषा बहुत मृदु और स्वच्छ है, कहीं न तो बड़े-बड़े शब्द हैं और न अस्पष्टता का दोष है। संस्कृत में ग्रन्थ रचनेवाले जैसे अन्य ग्रन्थकार करते हैं उसी तरह सिद्धर्षि ने भी प्राकृत शब्दों और प्रचलित भाव प्रकट करने वाले शब्दों को अपनाया है। जैनों में इस काव्य की सर्वप्रियता इतने से ही जानी जाती है कि ग्रन्थ रचे जाने के १०० वर्ष बाद ही इससे उद्धरण लिए जाने लगे और इसके संक्षिप्त रूप बनाये जाने लगे। कहा नहीं जा सकता कि इसका पाश्चात्य देशों में प्रभाव पड़ा या नहीं किन्तु इसे पढ़कर अंग्रेज कवि जॉन बनयन के रूपक ( Allegory ) Pilgrims Progress का स्मरण हो आता है। इसका विषय भी संसारी जीव का धर्मयात्रा द्वारा उत्थान ही है और अनेक बातों में उपमितिभवप्र० से मेल है पर वह न तो आकार में और न भावों में इसकी तुलना में आ सकता है। ___ कथाकर्ता और रचनाकाल-इस कथा के अन्त में एक प्रशस्ति दी गई है जिससे ज्ञात होता है कि इसकी रचना आचार्य सिद्धर्षि ने वि० सं० ९६२, १. जिनरलकोश पृ० ५४, सं० १०८८ में वर्तमान वर्धमानसूरि (जिनेश्वर सूरि के गुरु) ने १४६० ग्रन्थान-प्रमाण 'उपमितिभवप्रपन्चानामसमुच्चय'; सं० १२९८ में देवेन्द्रसूरि (चन्द्रगच्छ के चन्द्रसूरि के शिष्य) ने श्लोकों में उपमितिभवप्रपन्चाकथासारोद्धार; देवसूरि ने २३२४ ग्रन्थान-प्रमाण उपमितिभवप्रपन्चोद्धार (गद्य) तथा हंसरत्न ने उपमितिभवप्रपन्चाकथोद्धार की रचना की। इनमें देवेन्द्रसूरि की रचना अत्युत्तम है। इसमें सार मूलकथा के साथ-साथ चलता है। न इसमें कुछ छोड़ा गया है और न नवीन विषय लिया गया है। इसके संशोधक भी प्रद्यम्नसूरि हैं। केशरवाई ज्ञानमन्दिर, पाटन (गुजरात), वि० सं० २००६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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