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कथा-साहित्य
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स्वास्थ्यप्रद भोजन दिया, आखों में 'विमलालोक' अंजन लगाया और 'तत्त्वप्रीतिकर' जल से मुखशुद्धि कराई। धीरे-धीरे वह स्वस्थ होने लगा पर बहुत समय तक अपने पुराने अस्वास्थ्यकर आहार को छोड़ न सका । तब उक्त रसोइये ने 'सबुद्धि' नामक धाय को उसकी सेवा के लिए रख दिया। इससे उसकी भोजन-अशुद्धि दूर हुई और इस तरह निष्पुण्यक सपुण्यक बन गया । अब वह अपनी इस औषधि का लाभ दूसरों को देने का प्रयत्न करने लगा। पर उसे पहले से जाननेवाले लोग उस पर विश्वास नहीं करते थे। तब 'सबुद्धि' धाय ने सलाह दी कि अपनी तीनों औषधियों को काष्ठपात्र में रखकर राजमहल के आंगण में रखें ताकि प्रत्येक व्यक्ति उनसे स्वयं लाभ उठा सके।
कवि ने प्रथम प्रस्ताव के अन्तिम पद्यों में इस रूपक का खुलासा किया है। 'अदृष्टमूलपर्यन्त' नगर तो यह संसार है और 'निष्पुण्यक' अन्य कोई नहीं स्वयं कवि है। राजा 'सुस्थित' जिनराज हैं और उनका 'महल' जैनधर्म है। 'धर्मबोधकर' रसोइया गुरु है और उसकी पुत्री 'तद्दया' उनकी दयादृष्टि । ज्ञान ही 'अंजन' है, सच्ची श्रद्धा 'मुखशुद्धिकर नल' तथा सच्चरित्र ही स्वादिष्ट भोजन' है। 'सबुद्धि' ही पुण्य का मार्ग है और वह 'काष्ठपात्र एवं उसमें रखा भोजन, मल्हम (मंजन ) और अंजन' आगे वर्णित कथानुसार हैं।
अनन्तकाल से विद्यमान मनुजगति नाम के नगर में 'कर्मपरिणाम' नाम का राजा राज्य करता था। वह बड़ा शक्तिशाली, क्रूर तथा कठोर दण्ड देने वाला था। उसने अपने विनोद के लिए भवभ्रमण नाटक कराया, जिसमें नाना रूप धारणकर जगत् के प्राणी भाग ले रहे थे। इस नाटक से वह बड़ा खुश रहता था और उसकी रानी 'कालपरिणति' भी उसके साथ इस नाटक का रस लेती थी। उसे पुत्र की इच्छा हुई और पुत्र उत्पन्न होने पर पिता की ओर से उसका 'भव्य' तथा माता की ओर से 'सुमति' नाम रखा गया। उसी नगर में 'सदागम' नाम के आचार्य थे। राजा उनसे बहुत डरता था क्योंकि वे उसके उस नाटक का रंगभंग कर देते थे और कितने ही अभिनेताओं को उस नाटक से छुड़ाकर 'निवृति नगर' में जा बसाया था। वह नगर उसके राज्य के बाहर था और वहाँ सभी बड़े आनन्द से रहते थे। एक बार 'प्रज्ञाविशाला' नामक द्वारपाली राजकुमार 'भव्य' की भेंट 'सदागम' आचार्य से कराने में सफल हुई,
और भाग्य से राजकुमार को उनसे शिक्षा लेने की आज्ञा भी राजा-रानी से मिल गई । एक समय जब कि सदागम अपने उपदेशों को बाजार में दे रहा था, उस समय एक कोलाहल सुनाई दिया। उस समय 'संसारीजीव' नामक चोर पकड़ा गया और जब न्यायालय में कोलाहलपूर्वक भेजा जा रहा था तब
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