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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जैन कवियों ने रूपकात्मक ( Allegorical ) शैली में भी धर्मकथा कहने का उपक्रम किया है । २७६ उपमितिभवप्रपंचाकथा — इस कथा में चतुर्गतिरूप संसार का विस्तार, उपमाद्वारा स्पष्ट किया गया है। इसकी संस्कृत में समास द्वारा इस प्रकार व्युत्पत्ति है : उपमितिकृतो नरकतिर्यङ्नरामरगतिचतुष्करूपो भवः तस्य प्रपञ्चो यस्मिन् इति अर्थात् नारकी, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवगतिरूप भव = संसार का विस्तार जिस कथा में उपमिति = उपमा का विषय बनाया गया हो, वह कथा उपमितिभवप्रपंचाकथा कहलाती है । सिद्धर्षिगण ने अपने शब्दों में उसे इस प्रकार कहा है : कथा शरीरमेतस्या नाम्नैव प्रतिपादितम् । भवप्रपन्नो व्याजेन यतोऽस्यामुपमीयते ।। ५५ ।। यतोऽनुभूयमानोऽपि परोक्ष इव लक्ष्यते । अयं संसारविस्तारस्ततो व्याख्यानमर्हति || ५६ ॥ यह ग्रन्थ आठ प्रस्तावों में विभक्त है जिनमें भवप्रपंच की कथा के साथ प्रसंगवश न्याय, दर्शन, आयुर्वेद, ज्योतिष, सामुद्रिक, निमित्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, धातुविद्या, विनोद, व्यापार, दुर्व्यसन, युद्धनीति, राजनीति, नदी, नगर आदि का वर्णन प्रचुर मात्रा में किया गया है । कथावस्तु — अदृष्टमूलपर्यन्त नगर में एक कुरूप दरिद्र भिक्षु रहता था जो कि अनेक रोगों से पीड़ित था । उसका नाम 'निष्पुण्यक' था । भिक्षा में उसे जो कुछ सूखा भोजन मिलता था उससे उसकी बुभुक्षा शान्त न होती थी बल्कि बढ़ती ही गई । एक समय वह उस नगर के राजा सुस्थित के महल में भिक्षा हेतु गया । 'धर्मबोधकर' रसोइये और राजा की पुत्री 'तद्दया' ने उसे सुस्वादु और १. जिनरत्नकोश, पृ० ५३; बिब्लियोथेका इण्डिका सिरीज, कलकत्ता, १८९९-१९१४; देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड ( सं० ४६ ), बम्बई, १९१८ - २०; विण्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५२६-५३२ में कथानक का विवरण विस्तार से प्रस्तुत है; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० १८२-१८६; इसका जर्मन अनुवाद डब्ल्यू • किर्केल ने किया है, लाइप्जिग, १९२४; गुजराती अनुवाद - मोतीचन्द्र गिरधरलाल कापड़िया, तीन भागों में ( पृ० २१००), श्री कापड़िया ने इस कथा पर विस्तृत समीक्षात्मक ग्रन्थ 'सिद्धर्षि' भी लिखा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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