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कथा-साहित्य
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यह अनुष्टुभ् छन्दों में निर्मित है और १६ परिच्छेदों में विभक्त है।
रचयिता और रचनाकाल-ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति में कर्ता की गुरुपरम्परा दी गई है। तदनुसार श्रीपालचरित्र के रचयिता लब्धिसागरसूरि ( सं० १५५७ ) के शिष्य सौभाग्यसागर ने सं० १५७१ में इसकी रचना की और अनन्तहंस ने इसका संशोधन किया।'
धर्मपरीक्षा नाम की रचनाओं में १७वीं शताब्दी में श्रुतकीर्ति' एवं पार्श्वकीर्ति३ कृत धर्मपरीक्षा कथाओं का उल्लेख मिलता है। लगभग उसी शताब्दी में रामचन्द्र दिगम्बर ने पूज्यपादान्वयी पद्मनन्दि के शिष्य देवचन्द्र के अनुरोध पर संस्कृत में धर्मपरीक्षाकथा की रचना की। इसका ग्रन्थान ९०० श्लोक-प्रमाण है। वरंग जैनमठ में किसी वादिसिंहरचित धर्मपरीक्षा होने का उल्लेख मिलता है।
१८वीं शताब्दी में तपागच्छीय विजयप्रभसूरि (सं० १७१०-१७४८) के शासनकाल में जयविजय के शिष्य मानविजय ने अपने शिष्य देवविजय के लिए एक धर्मपरीक्षा की रचना की है।
यशोविजयकृत धर्मपरीक्षा तथा देवसेनकृत धर्मपरीक्षा भी मिलती हैं पर उनका विषय धार्मिक सिद्धान्तों का प्ररूपण करना है। कई अज्ञातकर्तृकधर्मपरीक्षायें मिलती हैं पर उनका प्रतिपाद्य विषय ज्ञात नहीं है।
मनोवेगकथा-यह अमितगति की धर्मपरीक्षा के समान ही परिहासपूर्ण कथासंग्रह है जो संस्कृत गद्य में लिखा गया है । रचयिता का नाम अज्ञात है।'
मनोवेग-पवनवेगकथानक-यह भी उक्त धर्मपरीक्षा के समान मनोवेगपवनवेग की प्रधान कथा को लेकर उपहासपूर्ण कथाओं का संग्रह है।' कर्ता का नाम अज्ञात है।
1. जिनरत्नकोश, पृ० १९०, मुक्तिविमल जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्यांक १३,
अहमदाबाद. २. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ५२४. १. जिनरत्नकोश, पृ० १९.. ४. वही. ५-६. वही, पृ० ३०१.
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