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________________ २७२ जन साहित्य का बृहद् इतिहास राजों ने अपने-अपने असाधारण अनुभव सुनाये, उनका समर्थन भी पुराणों के अलौकिक वृत्तान्तों द्वारा किया। पाँचवाँ आख्यान खंडपाना नाम की धूर्तनी का था। उसने अपने वृत्तान्त में नाना असम्भव घटनाओं का उल्लेख किया, जिनका समाधान क्रमशः उन धूर्तों ने पौराणिक वृत्तान्तों द्वारा कर दिया, फिर उसने एक अद्भुत आख्यान कहकर उन सबको अपने भागे हुए नौकर सिद्ध किया तथा कहा कि यदि उस पर विश्वास है तो उसे सब स्वामिनी मानें और विश्वास नहीं तो सब उसे भोज (दावत) दें तभी वे सब उसकी पराजय से बच सकेंगे। उसकी इस चतुराई से चकित हो सब धूर्तों ने लाचारी में उसे स्वामिनी मान लिया। फिर उसने अपनी धूर्तता से एक सेठ द्वारा रत्नमुद्रिका पाई और उसे बेचकर एवं खाद्य-सामग्री खरीद कर धूर्तों को आहार कराया। सभी धूतों ने उसकी प्रत्युत्पन्नमति के लिए साधुवाद किया और स्वीकार किया कि पुरुषों से स्त्री अधिक बुद्धिमान होती है। . इस ध्वन्यात्मक शैली द्वारा लेखक ने असंभव, मिथ्या और कल्पनीय बातों का निराकरण कर स्वस्थ, सदाचारी और संभव आख्यानों की ओर संकेत किया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध हरिभद्रसूरि हैं जिनका परिचय इस इतिहास के तृतीय भाग में दिया गया है। इस कथा का आधार जिनदासगणि (७वीं शती का उत्तरार्ध) कृत निशीथचूर्णि मालूम होता है। वहाँ इन धूतों की कथा लौकिक मृषावाद के रूप में दी गई है जिसे हरिभद्र ने एक विशिष्ट व्यङ्ग्य-ध्वन्यात्मक शैली द्वारा विकसित कर प्रस्तुत किया है। हरिभद्र के पुष्ट व्यङ्ग्य और उपहास हमें पाश्चात्य लेखक स्विफ्ट तथा वाल्टेयर की याद दिलाते हैं। भारतीय साहित्य में यद्यपि व्यङ्ग्य मिलते हैं पर अविकसित और मिश्र रूप में। हरिभद्र की यह कृति उनसे बहुत आगे है। इसके आदर्श पर परवर्ती अनेक रचनाएँ लिखी गई हैं, यथा अपभ्रंश धर्मपरीक्षा ( हरिषेण और श्रुतकीर्ति) और संस्कृत धर्मपरीक्षा ( अमितगति)। एक अन्य संस्कृत धूर्ताख्यान का उल्लेख मिलता है जो उक्त रचना का रूपान्तर है। धर्मपरीक्षा-कथा-धूर्ताख्यान की व्यङ्ग्यात्मक शैलीरूप से प्राकृत और संस्कृत में धर्मपरीक्षा नाम के अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं। उनमें कुछ को छोड़ १. डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, धूर्ताख्यान इन दि निशीथचूर्णि, आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ, बम्बई, १९५६. २. जिनरस्नकोश, पृ० १९९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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