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________________ कथा-साहित्य २६९ ___ इन गाथाओं के सम्बन्ध में कहा जाता है कि ये हरिभद्र (ग्रन्थकार ) के गुरु ने हरिभद्र के पास एक प्रसंग में उत्पन्न क्रोध को शान्त करने के लिए भेजी थीं, जिनको आधार बनाकर समराइच्चकहा की रचना की गई थी। सत्य जो हो पर इन गाथाओं के प्राचीन स्रोत का पता नहीं लगता, फिर भी इनकी व्याख्या रूप में जिस भव्य कथा-प्रासाद को खड़ा किया गया वह भव्य एवं अद्भुत है। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों-नाई, धोबी, चर्मकार, मछुए, चिड़ीमार, चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण, क्षत्रिय (ठाकुर), वैश्यों (व्यापारी एवं सार्थवाहों) के चलते-फिरते चित्र देखने को मिलते हैं और उनमें भारत की मध्यकालीन संस्कृति का उदात्त एवं भव्य रूप भी ।' रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता प्रसिद्ध हरिभद्रसूरि ( वि० सं० ७५७-८२७ ) हैं जिनका परिचय और रचनाओं का विवरण इस इतिहासमाला के तृतीय भाग (पृ० ४० और ३५९.६३) में दिया गया है । इस कथानक के संगठन में हरिभद्रसूरि ने अपनी पूर्ववर्ती रचनाओं वसुदेवहिण्डी, उवासगदसाओ, विपाकसूत्र, उत्तराध्ययन, नायाधम्मकहाओ प्रभृति जैनग्रन्थों से तथा महाभारत, अवदान साहित्य तथा गुणाढ्य की बृहत्कथा प्रभृति जैनेतर साहित्य से सहायता ली है और अपनी कल्पनाशक्ति तथा संवेदनशीलता से समराइच्चकहा को सरस एवं प्रभावोत्पादक बनाया है । परवर्ती कथाकारों को इस कथाग्रन्थ ने बहुत ही प्रभावित किया है । कुवलयमालाकार उद्योतनसूरि ने इसका 'समरमियंकाकहारे नाम से उल्लेख किया है। इस पर सं० १८७४ में क्षमाकल्याण और सुमतिवर्धन ने टिप्पणी लिखी है जो मूल का प्रायः संस्कृत छाया रूप है। १. इसके लिए देखें, डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, हरिभद्र के प्राकृत कथा-साहित्य का मालोचनात्मक परिशीलन, नवम प्रकरण; डा. जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ३९४-४११. २. जो इ छइ भवविरह, भवविरहं को न बंधए सुयणो। समयसयसत्थकुसलो समरमियंका कहा जस्स ॥ प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ में मुनि पुण्यविजयजी का लेख : आचार्य हरिभद्रसूरि और उनकी समरमियंकाकहा. ३. जिनरत्नकोश, पृ० ४१९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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