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________________ २६८ निदान के कारण अग्निशर्मा का उत्तरोत्तर उसे अन्त में 'अहो इसकी महानुभावता' द्वारा स्व-संबोधन नहीं हुआ । जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अधःपतन होता रहा जब तक कि अग्निशर्मा की प्रतिशोध - भावना का क्रम भावी आठ मानव भवों तक चलता रहा । वे अगले भवों में क्रमशः ( २ ) पिता-पुत्र के रूप में सिंह- आनन्द, ( ३ ) पुत्र और माता के रूप में शिखि - जालिनी, (४) पति और पत्नी के रूप में धन-धनश्री, (५) सहोदर के रूप में जय-विजय, ( ६ ) पति और भार्या के रूप में धरण- लक्ष्मी, (७) चचेरे भाई के रूप में राजकुमार गुणचन्द्र और वानमन्तर विद्याधर तथा अन्त में और गिरिसेन हुए । सेन- विषेण, ( ८ ) ( ९ ) समरादित्य इन नौ भवों ( प्रकरणों) में अनेकों अवान्तर कथाएँ दी गई हैं : प्रथम भव में विजयसेन आचार्य की; दूसरे में अमरगुप्त-धर्मघोष अवधिज्ञानी की ; तीसरे में विजयसिंह आचार्य की; चौथे में यशोधर - नयनावली की ; पंचम में सनत्कुमार की; छठे भव में अर्हदत्त की; सातवें में केवली साध्वी की ; आठवें में विजयधर्म की तथा नववें भव में पांच अन्तर्कथाएँ दी गई हैं जिनका उद्देश्य जन्मजन्मान्तर के कर्मफलों का विवेचन करना ही है । इसकी अवान्तर कथाएँ परवर्ती अनेक रचनाओं की उपजीव्य रही हैं । चौथे भव की अन्तर्कथा यशोधर पर तो २४ से अधिक प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में काव्य लिखे गये हैं प्रारम्भ में ग्रन्थकार ने अपनी कथा के स्रोत रूप में प्राप्त आठ' संग्रहणी गाथाओं का उल्लेख किया है उनमें तीन इस प्रकार हैं : गुणसेण- अग्निसम्मा सीहा-गंदा य तह पिआ-पुत्ता । सिहि-जालिणी माइ-सुओ, धण-धरणसिरिओ य पइ-भज्जा ॥ १ ॥ जय-विजया य सहोअर, धरणो लच्छीय तह पई-भज्जा । सेण-विसेण पित्तिअ, उत्ता जंमंमि सत्तमए ||२|| गुणचन्द - बाणमन्तर समराइच्च गिरिसेण पाणोय । संसारो ॥३॥ एगस्स तओ मुक्खो, णंतो अण्णस्स . Jain Education International १. इन गाथाओं में नायक - प्रतिनायक के नौ मानव भवान्तरों के नाम, उनका सम्बन्ध, उनकी निवास नगरियाँ एवं मानवभवों में मरण के पश्चात् प्राप्त स्वर्ग-नरकों के नाम दिये गये हैं । ये गाथाएँ कथानक की रूपरेखा जैसी लगती हैं और स्वयं ग्रन्थकार ने लिखी हों यह सम्भावना है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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