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कथा साहित्य
२५१ इनमें अधिकांश की कथा आगमों, नियुक्तियों और प्रकीर्णकों में पाई जाती हैं। जो औपदेशिक प्रकरणों, माहात्म्यों और दृष्टान्त कथाओं में अनैतिहासिक या पौराणिक पात्र से प्रतीत होते थे, वे सब यहाँ तपशूर तथा जैनसंघ के यथार्थ व्यक्ति माने गये हैं। कथार्णव का ग्रन्थान ७५९० श्लोक-प्रमाण है ।'
रचयिता एवं रचनाकाल-खरतरगच्छ के गुणरत्नसूरि के शिष्य पद्ममन्दिरगणि ने इसकी रचना वि० सं० १५५३ में की है।
१. कथारत्नाकर यह १५ तरंगों में विभक्त है। इसके अन्त में अगडदत्त की कथा है। इसकी रचना नरचन्द्रसूरि ने की है। जैनधर्म सम्बन्धी कथानक सुनने की वस्तुपाल महामात्य की उत्कण्ठा शान्त करने के लिए ही नरचन्द्र ने तप, दान, अहिंसा आदि संबंधी अनेक धर्मकथावाला यह कथाकोश रचा है। इसे 'कथारत्नसागर' भी कहते हैं । इसकी एक ताड़पत्रीय प्रति सं० १३१९ की मिलती है। इसका ग्रन्थाग्र २०९१ श्लोक-प्रमाण है। यह सारा ग्रन्थ अनुष्टुभ् छन्द में रचा गया है। __ रचयिता एवं रचनाकाल इसके प्रणेता नरचन्द्रसूरि बड़े विद्वान् थे। ये हषपुरीय या मलधारिगच्छ के देवप्रभसूरि के शिष्य थे। वे महामात्य वस्तुपाल के. मातृपश्च से गुरु थे और वस्तुपाल को न्याय, व्याकरण तथा साहित्य में पारंगत किया था। इनके रचे अनेक ग्रन्थ मिलते हैं यथा-न्यायकन्दलीपंजिका, अनर्घ राघवटिप्पण, ज्योतिःसार, सर्वजिनसाधारणस्तवन आदि ।' प्रबंधकोश के अनुसार नरचन्द्रसूरि का निधन भाद्रपद १० वि० सं० १२८७ में हुआ था इसलिए उक्त रचना का समय तेरहवीं शताब्दी का मध्य मानना चाहिये।
१. जिनरत्नकोश, पृ० ६०, ऋषिमण्डलप्रकरण, आत्मवल्लभ ग्रन्थमाला,
सं० १३, वलद, १९३९, प्रस्तावना विशेष रूप से दृष्टव्य है।
२. जिनरत्नकोश, पृ० ६६; पाटन की हस्तप्रतियों का सूचीपत्र (गा० ओ०.
सि०), भाग १, पृ० १४. १. इत्यभ्यर्थनया चक्रुर्वस्तुपालमंत्रिणः ।
नरचन्द्रमुनीन्द्रास्ते श्रीकथारत्नसागरम् ।। ४. महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमण्डल, पृ० १००-१०४ तथा पृ०.
२०७-२०८.
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