SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० जैन साहित्य का वृहद् इतिहास ७. सं० १२६९ ( १८८४-८७)-यह प्रति टूटी-फूटी है तथा लिपि गड़बड़ है । इसमें भावना विषयक अमरचन्द्र की कथा, पारमार्थिक मैत्री विषयक विक्रमादित्य आदि की कथाएँ हैं। पत्र १९ में वैतालपंचविंशतिका की कथा उद्धत है और अपभ्रंश एवं प्राचीन गुजराती में भी छोटी-छोटी कुछ कथाएँ दी गई हैं। इसकी समाप्ति एक प्राणिकथा से होती है ओ संभवतः पंचतंत्र की है। ८. सं० १३२२ ( १८९१-९५)-इसमें मदनरेखा, सनत्कुमार आदि की कथाएँ संस्कृत में दी गई हैं और बीच-बीच में प्राकृत एवं अपभ्रंश के पद्य भी दिये गये हैं। ९. सं० १३२३ ( १८९१-९५)--यह संस्कृत गद्य में है जिसमें संस्कृतप्राकृत पद्य बीच-बीच में प्रस्तुत हुए हैं। इसमें देवपूजा विषयक देवपाल की, मान सम्बन्धी बाहुबलि की, माया विषयक अशोकदत्त, वन्दन-पूजा के सम्बन्ध में मदनावली आदि अनेक विषयक कथाएँ दी गई हैं। कोई-कोई कथा प्राकृत गाथा से ही प्रारंभ होती है । १०. सं० १३२४ (१८९१-९५ )-यह टूटा-फूटा अपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें प्रसन्नचन्द्र, सुलसा, चिलातिपुत्र आदि की कथाएँ संस्कृत गद्य में हैं। कहीं कहीं श्लोक भी हैं। कुछ अन्य कथाकोश इस प्रकार हैं: कथासमास-औपदेशिक प्रकरणग्रन्थ 'उपदेशमाला' में उल्लिखित दृष्टान्तों पर स्वतन्त्र कथाग्रंथ लिखने की जैनाचार्यों में विशेष प्रवृत्ति देखी गई है। उपदेशमाला पर लगभग बीसेक टीकाएँ लिखी गई हैं उनमें अनेक कथात्मक हैं। प्रस्तुत रचना उपदेशमाला-कथासमास नाम से भी कही जाती है और संक्षेप में 'कथासमास' नाम से भी। इसमें सभी कथाएँ प्राकृत में दी गई हैं। रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता जिनभद्र मुनि हैं जो शालिभद्र के शिष्य थे। उन्होंने इसे संवत् १२०४ में रचा था।' ____ कथार्णव-यह संस्कृत अनुष्टुभ् छन्दों में निर्मित कथाओं का संग्रहरूप टीकाग्रन्थ है जिसमें ऋषिमंडलस्तोत्र की व्याख्या करते हुए उसमें नमस्कार के रूप में उल्लिखित एवं वर्णित शलाकापुरुषों, उनके समकालीन धर्मात्माओं, प्रत्येकबुद्धों, जिनपालित आदि काल्पनिक वीरों, मेतार्य जैसे तपस्वियों और महावीर के उत्तरकालीन आचार्यों की कथारूप विस्तृत जीवनियाँ दी गई हैं । १. जिनरत्नकोश, पृ० ५१; पाटन हस्त० सूची, भाग १, पृ. ९०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy