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________________ प्रास्ताविक साहित्य के निर्माण में जैनों का योगदान बड़े महत्व का है । इस युग से सम्बद्ध प्रमुख कवियों और ग्रन्थकारों की एक मण्डली थी जिनकी साहित्यिक रचनाएँ महान् पाण्डित्य के उदाहरण हैं । वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, शाकटायन, महावीराचार्य, स्वयंभू, पुष्पदन्त, मल्टिपेण सामदेव, पम्प आदि इसी युग के हैं । उनकी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और कन्नड साहित्य में कृतियाँ एवं लाक्षणिक साहित्य - गणित, व्याकरण, राजनीति आदि पर रचनाएँ स्थायी महत्त्ववाली हैं। राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष ( लग० सन् ८१५ - ७७ ई० ) जिनसेन का भक्त था और अपने जीवन के अन्तिम भाग में उसने जैनधर्म स्वीकार किया था तथा कतिपय जैन ग्रन्थों को रचा था । दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य ( १४ - १५ वीं शताब्दी ) के पतन के बाद भी कई जैन सामन्त राजा थे जो कि अंग्रेजी शासन के आगमन के समय बने रहे । उत्तरमध्यकाल में जैनों की साहित्यिक प्रवृत्ति के केन्द्र गुजरात में अहलपुर, खंभात और भड़ौच, राजस्थान में भिन्नमाल, जाबालिपुर, नागपुर, अजयमेरु, चित्रकूट और आबाद पुर तथा मालवा में उज्जैन, ग्वालियर और धारानगर थे। उस समय गुजरात में चौलुक्य और बघेल, राजस्थान में चाहमान', परमार वंश की शाखाएँ और गुहिलौत तथा मालवा और पड़ोस में परमार, चन्देल और कल्चुरि राजा राज्य करते थे। इन शासक वंशों ने जैनधर्म और जैन समाज के साथ बहुत सहानुभूति और समादर का व्यवहार किया, इससे जैन साधुओं और गृहस्थों को निर्विघ्न साहित्यिक सेवा और जीवनयापन में बड़ी प्रगति और सफलता मिली । गुजरात के चौलुक्य नरेशों, विशेषकर सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल के आश्रय में जैनधर्म ने अपने प्रतापी दिन देखे और उस युग में कला और साहित्य के निर्माण में जैनों के योगदान ने गुजरात को महान् बना दिया, जो आज भी है । इस समय से गुजरात में साहित्यिक क्रिया-कलाप का एक युग प्रारम्भ हुआ और इसका श्रेय हेमचन्द्र और उनके बाद होनेवाले अनेक जैन कवियों को है। राज दरबारों में जैनाचार्यों और विद्वानों के त्यागी जीवन और उसके साथ विद्योपासना की भी बड़ी प्रतिष्ठा की जाती थी और अनेक राजवंशी लोग भी उनके भक्त और उपासक होने में अपना कल्याण समझते थे । मुस्लिम शासन काल में यद्यपि जैनों के मन्दिर यत्र-तत्र नष्ट किये गये पर संभवतः उतने अधिक परिमाण में नहीं । उस काल में भी जैनाचार्यों और जैन १. डा० दशरथ शर्मा, मर्ली चौहान डाइनेस्टी, पृ० २२७ - २२८. Jain Education International ९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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