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________________ पौराणिक महाकाव्य २०१ __ मृगावतीचरित-कौशाम्बी का महावीरकालीन राजवंश जैनेतर और जैन साहित्य में कवियों के लिए विविध प्रकार के कथानक चयन के लिए आकर्षक रहा है। महावीर के काल में कौशाम्बी नरेश शतानीक का परिवार प्रबुद्ध परिवार था। उसकी रानी मृगावती और बहिन जयन्ती तथा पुत्र उदयन को जैन कवियों ने अपने चरित्र एवं कथाकाव्यों का विषय बनाया है। मृगावती पर हीरविजयसूरिकृत मृगावतीआख्यान ग्रन्थान ८०० श्लोक प्रमाण मिलता है। अन्य कृतियों में मृगावतीकुलक (प्राकृत में ) तथा अज्ञात लेखक की मृगावतीकथा का उल्लेख मिलता है।' मलधार देवप्रभसूरिकृत मृगावतीचरित्र पाँच सर्गों का एक लघु काव्य है जो अनुष्टुप् छन्दों में है।' सर्गान्त में छन्द परिवर्तन हुआ है। इसमें कुल मिलाकर १८४८ पद्य हैं। इस काव्य में दिखाया गया है कि उज्जयनी नरेश प्रद्योत मृगावती को उसके अतिशय सौन्दर्य के कारण प्राप्त करना चाहता था और इसके लिए उसने कौशाम्बी पर घेरा डाल दिया। मृगावती ने अपने बुद्धि-कौशल से उसे ऐसा न करने दिया और अन्त में भग० महावीर के समक्ष दीक्षित हो गई। प्रद्योत को महावीर ने परस्त्रीवर्जन का उपदेश दिया। देवप्रभसूरि की अन्य रचनाओं में पाण्डवपुराण, सुदर्शनाचरित तथा काकुस्थकेलिकाव्य मिलते हैं। मृगावतीचरित्र में मृगावती के सतीत्व एवं बुद्धि कौशल तथा जिनदीक्षा का रोचक वर्णन दिया गया है । जयन्तीचरित-इसे सिद्धजयन्तीचरित्र, जयन्तीप्रश्नोत्तरसंग्रह या केवल प्रश्नोत्तरसंग्रह नाम से कहते हैं। यह प्राकृत में निर्मित ग्रन्थ है जिसमें मूल २८ गाथाएँ हैं जिनका आधार भगवतीसूत्र के १२वें शतक का द्वितीय उद्देशक है। इनकी रचना पूर्णिमागच्छ के मानतुंगसूरि ने की थी। इस पर उनके शिष्य मलयप्रभसूरि ने एक विशाल वृत्ति लिखी है जिसका ग्रन्थान ६६०० श्लोक-प्रमाण है। इस वृत्ति में प्राकृत भाषा में ही ५६ के लगभग कथाएँ दी गई हैं और इस प्रकार से यह एक अच्छा कथाकोश बन गया है। इसमें कौशाम्बी की राजकुमारी तथा मृगावती की ननद एवं उदयन की फूफी की भी कथा है जो भग० महावीर के शासनकाल में निर्ग्रन्थ साधुओं को वसति देने के कारण प्रथम शय्या १. जिनरत्नकोश, पृ० ३१३. २. हीरालाल हंसराज, जामनगर, सं० १९६६. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १३३, २७७. ४. पंन्यास मणिविजय ग्रन्थमाला, लींच ( मेहसाना), वि० सं० २००६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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