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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
महान् हिंसक संकल्प कर बैठता है । कालान्तर में दूसरी घटना के प्रभाव से बह प्रतिबुद्ध हो भगवान् महावीर का शिष्य बन आत्म-कल्याण करता है। इस चरित को लेकर खरतरगच्छ के गुणशेखर के शिष्य नयरंग ने सं० १६२४ के लगभग आर्जुनमालाकार काव्य लिखा । इसी चरित को लेकर वर्तमान युग में तेरापन्थी आचार्य कालूगणि से दीक्षित एवं तुलसीगणि के शिष्य चन्दनमुनि ने सुलचित संस्कृत गद्य में आर्जुनमालाकार ग्रन्थ लिखा है । इसका रचनाकाल सं० २०२५ है । काव्य में सात समुच्छ्वास हैं । चन्दनमुनि की अनेक संस्कृत - प्राकृत रचनाएँ मिलती हैं: संस्कृत में प्रभवप्रबोधकाव्य, अभिनिष्क्रमण, ज्योतिस्फुलिंग, उपदेशामृत, वैराग्यैकसप्तति, प्रबोधपंचपञ्चाशिका, अनुभवशतक, पंचतीर्थी, आत्मभावद्वात्रिंशिका, पथिकपञ्चदशक; प्राकृत में रयणवालकहा, जयचरियं तथा णी धम्मसुतीओ |
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रोहिणेयकथा - महावीरकालीन प्रसिद्ध चोर, जिसका कि उनके उपदेश से उद्धार हुआ था, रोहिणेय पर रामभद्रसूरिकृत प्रबुद्धरौहिणेय नाटक के अतिरिक्त संस्कृत में कासह गच्छ के देवचन्द्र के शिष्य उपाध्याय देवमूर्ति ने उक्त ग्रन्थ लिखा । उपाध्याय देवमूर्ति की अन्य रचनाओं में विक्रमचरित उपलब्ध है ।
विद्युच्चरचोर, जो पीछे मुनि हो गया था, पर भी भट्टारक सकलकीर्तिकृत ग्रन्थ मिलता है । "
चन्दनाचरित - महासती चन्दना भग० महावीर के साध्वी संघ की प्रमुखा थी । उसके चरित्र को लेकर भट्टा० शुभचन्द्र ने यह काव्य लिखा । इस काव्य में पाँच सर्ग हैं। इसकी रचना बागड प्रदेश के डूंगरपुर नगर में हुई थी। इस सम्बन्ध की अन्य स्वतन्त्र रचनाएँ प्राकृत संस्कृत में नहीं हुई हैं ।
१. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ५८४.
२. रामलाल हंसराज गोलछा, विराटनगर ( नेपाल ) द्वारा प्रकाशित | इसका हिन्दी अनुवाद छोगमल चोपड़ा ने किया है 1
३. जिनरत्नकोश, पृ० ३३४; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९०८ तथा जैन
आत्मानन्द सभा, भावनगर, १९१६, इसका अंग्रेजी अनुवाद न्यू हेवेन (अमेरिका) से सन् १९३० में एच० जोन्सन ने 'स्टडीज इन ऑनर ऑफ ब्लूमफील्ड' में प्रकाशित किया है ।
४. जिनरत्नकोश, पृ० ३५६.
५. सर्ग ५, पद्य सं० २०८; राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व,
पृ० ००.
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