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________________ पौराणिक महाकाव्य १९९ लगभग की थी। इस काव्य की हस्तलिखित प्राचीन प्रति सं० १५९१ की मिलती है। विद्यानन्दिकृत उक्त काव्य को ही भ्रान्ति से उनके शिष्य ब्रह्म नेमिदत्त या मल्लिभूषण या विश्वभूषणकृत मान लिया गया है। कामदेवचरित-महावीर के जीवन-प्रसंग में धनी गृहस्थ कामदेव का वर्णन आता है। उसी को लेकर रोचक काव्य के रूप में अंचलगच्छ के मेरुतुंगसूरि ने वि० सं० १४०९ में चरित्र निर्मित किया । आनन्दसुन्दरकाव्य-महावीरकालीन दस श्रावकों के समुदित चरित के रूप में संस्कृत भाषा में आनन्दसुन्दरकाव्य' अपर नाम दशश्रावकचरित की रचना सर्वविजयगणि ने की । उक्त गणि ने तपागच्छीय लक्ष्मीसागरसूरि के पट्टधर सुमतिसाधु के पट्टकाल में मालवा के गियासुद्दीन खिलजी के राजकर्मचारी जावद की प्रार्थना पर उक्त काव्य की रचना की थी। इस ग्रन्थ की प्राचीन हस्तलिखित प्रति सं० १५५१ की मिली है। सर्वविजयगणि की अन्य रचना सुमतिसम्भव भी मिलती है जिसमें सुमतिसाधु और जावड़ का चरित्र वर्णित है । दशश्रावकों के चरित को लेकर प्राकृत में जिनपति के शिष्य पूर्णभद्रगणि ने सं० १२७५ में उपासकदशाकथा अपर नाम दशश्रावकचरित और साधुविजय के शिष्य शुभवर्धन ने सं० १५४२ में ग्रन्थान ८०० श्लोक-प्रमाण दशश्रावकचरित्र (प्राकृत) की रचना की। एक अज्ञात लेखककृत आनन्दादिश्रावकचरित तथा दशश्राद्धचरित' नामक चरितग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं। आर्जुनमालाकार-अर्जुनमाली घटनाविशेष के प्रभाव से समग्र मानवजाति के प्रति विद्रोही बन जाता है और प्रतिदिन सात व्यक्तियों को मार गिराने का १. प्रस्तावना, पृ. १३-१७. २. जिनरत्नकोश, पृ० ८४; हेमचन्द्र सभा, पाटन, १९२८. ३. दशश्रावक : मानन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्ड कोलिक, सद्दालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता, सालिहीपिता. ४. जिनरत्नकोश, पृ. ३०. ५. वही, पृ० ५६, १७१. ६. वही, पृ० १७१. ७. वही, पृ० ३०. ८. वही, पृ० १७१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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