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________________ १९८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बतलाया गया है। इस कथा का विस्तार हरिषेणाचार्य के बृहत्कथाकोश में, श्रीचन्द्रकृत अपभ्रंश कहाकोसु, तथा रामचन्द्र मुमुक्षुकृत पुण्याश्रवकथाकोश में दिया गया है। एतद्विषयक सर्वप्रथम स्वतंत्र काव्य अपभ्रंश में नयनन्दि का सुदंसणचरिऊ (सं० ११००) है। इसके बाद हमें संस्कृत की तीन रचनाओं का उल्लेख मिलता है। उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है १. भट्टारक सकलकीर्ति ( १५वीं का उत्तरार्ध) कृत काव्य में आठ परिच्छेद हैं।' उसकी प्राचीन हस्तलिखित प्रति सं० १६५४ की मिली है। सकलकीर्ति और उनकी कृतियों का उल्लेख पहले कर चुके हैं । २. भट्टारक मुमुक्षु विद्यानन्दिकृत काव्य १२ अधिकारों में विभक्त है । ग्रन्थपरिमाण १३६२ श्लोक-प्रमाण है। ग्रन्थ के प्रथम अधिकार में महावीरसमागम, दूसरे में श्रावकानार एवं तत्त्वोपदेश, अष्टम में सुदर्शन के पूर्वभवों का तथा नवम में द्वादश अनुप्रेक्षाओं का वर्णन है और शेष अधिकारों में सुदर्शन के वर्तमान भवों का। समस्त ग्रन्थ अनुष्टुप् छन्दों में निर्मित है पर अधिकारान्त में छन्द बदल दिये गये हैं। ग्रन्थ में 'उक्तं च' द्वारा अन्य ग्रन्थों से प्राकृत एवं संस्कृत पद्य उद्धृत किये गये हैं। प्रस्तुत काव्य के प्रत्येक अधिकार की अन्तिम पुष्पिका तथा ग्रन्थान्त में दी गई प्रशस्ति में कर्ता ने अपना नामनिर्देश तथा गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है जिससे मालूम होता है कि इसके लेखक मुमुश्च विद्यानन्दि हैं। ये मूलसंघभारतीगच्छ, बलात्कारगण के भट्टारक प्रभाचन्द्र के प्रशिष्य तथा भट्टारक देवकीर्ति के शिष्य थे। विद्यानन्दि के शिष्य मल्लिभूषण, श्रुतसागर और ब्रह्म नेमिदत्त भी अच्छे कवि एवं ग्रन्थकार हुए हैं। विद्यानन्दि के कार्यकलाप का समय वि० सं० १४८९ से १५३८ माना जाता है। प्रस्तुत काव्य की रचना उन्होंने गन्धारपुरी (सूरत या उसके भाग या समीपवर्ती नगर ) में सं० १५१३ के १. जिनरत्नकोश, पृ० ४४४, राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ. "; मराठी अनुवाद सहित सोलापुर से सन् १९२७ में प्रकाशित; डा. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ. ४५४-५६ में विशेष परिचय दिया गया है। २. जिनरत्नकोश, पृ० ४४४; भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी, वि० सं० २०२७, डा. हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित, प्रस्तावना दृष्टव्य, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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