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पौराणिक महाकाव्य
१९७ उदायनराजकथा और उदायनराजचरित्र नाम से तीन-चार काव्य' तथा रानी प्रभावती पर प्रभावतीकथा, प्रभावतीकल्प, प्रभावतीचरित्र (संस्कृत), प्रभावती. दृष्टान्त ( प्राकृत ) नामक कृतियों' की रचना की ।
मृगापुत्रचरित—यह उत्तराध्ययन के १५वे अध्ययन पर आश्रित प्राकृत ग्रन्थ है। इसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। विपाकसूत्र में भी एक मृगापुत्र का वर्णन आता है जिसके द्वारा दुःखविपाक का एक रोमांचकारी चित्र उपस्थित किया गया है। ___ अतिमुक्तकचरित-अन्तगडदसाओ में दो अतिमुक्तकों का वर्णन आता है : एक तो नेमि और कृष्ण के समय के जो कंस और देवकी के अग्रज तथा कुमारकाल में दीक्षित हो गये थे और दूसरे महावीर के समय के राजकुमार जो आध्यात्मिक समस्याओं के समाधानार्थ कुमारकाल में ही भिक्षु-जीवन स्वीकारकर अन्त में मुक्त हुए थे। अतिमुक्तक के चरित्र को लेकर संस्कृत में तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनमें से एक २११ संस्कृत पद्यों में जिनपति के शिष्य पूर्णभद्रगणि ने सं० १२८२ में पालनपुर में रहते हुए लिखी थी।' पूर्णभद्रगणि को अन्य कृतियाँ धन्यशालिभद्रचरित्र (सं० १२८५) तथा कृतपुण्यचरित्र (सं० १३०५ ) हैं। । दूसरा काव्य भी संस्कृत में है जिसे अंचलगच्छ के शालिभद्र के शिष्य धर्मघोष ने सं० १४२८ में रचा था।"
एक अज्ञात लेखककृत अतिमुक्तचरित्र का भी उल्लेख मिलता है।
सुदर्शनचरित-इसमें सुदर्शन मुनि का चरित्र वर्णित है। जैन परम्परा में इन्हें महावीर के समकालीन अन्तःकृत केवली माना गया है। इनका संक्षिप्त वर्णन अन्तगडदसाओ तथा भत्तपइण्णा में दिया गया है। भत्तपइण्णा और मूलाराधना ( भगवती आराधना ) में इन्हें णमोकार मन्त्र के प्रभाव से मूर्ख गोपाल के जीवन से उत्कर्षकर सुदर्शन सेठ और उसी जन्म में मोक्षफल पानेवाला
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४६. २. वही, पृ० २६६. ३. वही, पृ० ३१३. ४. वही, पृ० ४; जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत, १९४४. ५. वही, पृ. ४. ६. वही.
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