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________________ प्रास्ताविक से एकदम स्वतन्त्र नहीं। उसने प्राचीन आगमों से ही बीजसूत्रों को लिया है और बाहरी उपादानों तथा नवीन शैलियों द्वारा उन्हें पल्लवित कर एक स्वतन्त्र रूप धारण कर लिया है। आगमेतर साहित्य की प्रथमानुयोग-विषयक सामग्री का नवीन काव्यशैलियों में प्रस्तुतीकरण ही हमारा 'जैन काव्य-साहित्य' है। जैन काव्य-साहित्य : जैन विद्वान् नूतन काव्य शैली में, ईस्वी तीसरी-चौथी शताब्दी से ही रचनाएँ लिखने लगे थे । इस शैली में रचित कृतियों में काव्य की अनेक विधाओं और कथाओं के बहुरंगी रूपों के दर्शन होते हैं। उन्होंने विशालकाय पौराणिक महाकाव्यों, सामान्य काव्यों, शास्त्रीय महाकाव्यों, खण्डकाव्यों, गद्यकाव्यों, नाटक, चम्पू आदि विविध काव्यविधाओं की तथा रमन्यास, उपन्यास, दृष्टान्तकथा, नीतिकथा, पुराणकथा, लौकिककथा, परीकथा और नानाविध कौतुकवर्धक अद्भुत कथाओं की रचना की है। जैन काव्य-साहित्य की विषय वस्तु वस्तुतः विशाल है। उसमें ऋषभादि २४ तीर्थंकरों के समुदित तथा पृथक-पृथक अनेक नूतन चरित, भरत, सनत्कुमार, ब्रह्मदत्त, राम, कृष्ण, पाण्डव, नल आदि एवं चक्रवर्ती जैसी प्रसिद्धि पानेवाले अनेकों नरेशों के विविध प्रकार के आख्यान, नाना प्रकार के साधु और साध्वियों और राजा-रानियों के, ब्राह्मणों और श्रमणों के, सेठ और सेठानियों के, धनिक तथा दरिद्रों के, चोर और जुआड़ियों के, धूर्त और गणिकाओं के, धर्मी और अधर्मियों के, पुण्यात्मा और पापात्माओं एवं नाना प्रकार के मानवों को उद्देश कर लिखे गए कथा-ग्रन्थ हैं। __ जैन काव्य-साहित्य की, ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों से पाँचवी तक कतिपय कृतियाँ उल्लेख रूप में ही मिलती हैं। पाँचवीं से दसवीं तक सर्वाङ्गपूर्ण, विकसित एवं आकर-ग्रन्थों के रूप में ऐसी विशाल रचनाएँ मिलती हैं जिन्हें हम प्रतिनिधि रचनाएँ कह सकते हैं किन्तु वे हैं अंगुलियों पर गिनने लायक । परन्तु ग्यारहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक एतद्विषयक रचनाएँ विशाल गंगा की धारा के समान प्रचुर प्रमाण में उपलब्ध होती हैं, और अब भी मन्द एवं क्षीण धारा के रूप में प्रवाहित हैं। __ भाषा के क्षेत्र में जैन काव्यसाहित्य किसी एक भाषा में कभी नहीं बद्ध रहा। एक ओर उन्होंने प्रांजल, प्रौढ़, उदात्त संस्कृत में तो दूसरी ओर सर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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