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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास पंचकल्पभाष्य के अनुसार आर्य कालक प्रथमानुयोग, लोकानुयोग और संग्रहणियों के प्रणेता थे। लोकानुयोग अष्टांग निमित्तविद्या का ग्रन्थ था। उसके नष्ट हो जाने पर गण्डिकानुयोग की रचना की गई। तथ्य जो हो पर आज प्रथमानुयोग हमारे सामने नहीं है और न गण्डिकानुयोग । इसलिए प्रथमानुयोग की भाषा-शैली, वर्णनपद्धति, विषयवस्तु, छन्द आदि में क्या-क्या विशेषताएँ थी, यह जानने के हमारे पास अब कोई साधन नहीं। प्रथमानुयोग-विषयक हमें जो प्रतिनिधि रचनाएँ मिलती हैं-यथा विमलसूरि का पउमचरियं, जिनसेन का हरिवंशपुराण, जिनसेन का महापुराण, शीलांक का चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, भद्रेश्वरकृत कहावलि और हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-उन सबमें उन्हें प्रथमानुयोग विभाग की रचना कहा गया है और प्रथमानुयोग के आधार से रची गई अनेक प्राचीन रचनाओं (जिनमें से अनेक अनुपलब्ध हैं) को अपना स्रोत माना गया है। प्रथमानुयोग और उसके आधार पर रची गई प्राचीन कृतियाँ (जोकि ईस्वी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में रची गई थी) भले न मिलती हों, पर प्रथमानुयोग और एतद्विषयक पश्चात्कालीन सैकड़ों रचनाएँ, तथा अन्य अनुयोगों (चरणकरण, गणित और द्रव्यानुयोग) की भी रचनाएँ आगमेतर साहित्य की विशालता, व्यापकता और लोकप्रियता की अवश्य द्योतक हैं । चूँकि आगमिक साहित्य बहुत पीछे ( ई० सन् ४५३-४६६ में ) लिपिबद्ध हुआ था इसलिए आगमिक और आगमेतर साहित्य के बीच निश्चित भेदक रेखा खींचना संभव नहीं। फिर भी आगमिक साहित्य के पूर्ण होने के पहले ही आगमेतर साहित्य की रचना प्रारम्भ हो गई थी और तब से अब तक जारी है। हमने ऊपर यह भी बतलाया है कि आगमेतर साहित्य आगमिक साहित्य १. पच्छा तेण सुत्ते णटे गंख्यिानुयोगा कया। विमलसूरि ने पूर्वगत में से नारायण और बलदेव का चरित्र सुनकर पउमचरियं की रचना की । चउपनमहापुरिसचरियं निबद्ध नामावलियों (समवायांग, सूत्र १३२) के आधार पर लिखा गया और पनचरित अनुत्तरवाग्मी कीर्तिधर की रचना के आधार पर तथा जिनसेन के मादि पुराण का माधार कवि परिमेष्टीकृत वागर्थसंग्रह बतलाया गया है। १. पादलिससूरिकृत तरंगलोला ( ई० दूसरी शताब्दी), भद्रबाहुकृत वासुदेव चरित मादि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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