SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रास्ताविक आवश्यकचूणि', आवश्यकसूत्र' और अनुयोगद्वार की हारिभद्रीया वृत्ति तथा आवश्यकनियुक्ति में प्रथमानुयोग नाम से जिस माहित्य का उल्लेख है वह पुनरुद्धरित प्रथमानुयोग को लक्ष्य करके है। दिगम्बर परम्परा में अनुयोग या धर्मकथानुयोग का सामान्य नाम प्रथमानुयोग दिया गया है। सम्भवतः इसकी विशालता, उपादेयता और लोकप्रियता के कारण इसे प्रथम-अनुयोग कहा गया है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि इस साहित्य का वास्तविक नाम तो प्रथमानुयोग था क्योंकि इस नाम से इसके अनेक उल्लेख हैं। पर उसके लुप्त होने के कारण आचार्य कालक द्वारा पुनरुद्धरित प्रथमानुयोग से भेद प्रकट करने के लिए आगमसूत्रों-समवायांग और नन्दिसूत्र में समागत प्रथमानुयाग को 'मूलप्रथमानुयोग' नाम दिया गया है । यद्यपि उक्त आगमसूत्रों के अनुसार मूलप्रथमानुयोग का विषय केवल तीर्थकर और उनके शिष्यसमुदाय का चरित्र-चित्रण है पर भाष्य, चूर्णि एवं वृत्ति साहित्य के अनुसार प्रथमानुयोग में तीर्थंकरों के चरित के साथ चक्रवर्ती, नारायण आदि के चरितों के वर्णन होने की बात भी लिखी है। इसका भाव यही समझना चाहिए कि तीर्थंकरों के चरितों के साथ अनिवार्य रीति से सम्बन्ध रखनेवाले चक्रवर्ती, वासुदेव आदि के चरित्र भी प्रथमानुयोग के विषय हैं। यदि यह भाव न होता तो आगमसूत्रों की व्याख्या करनेवाले साहित्य में ऐसी बात न लिखी होती। आर्य कालक द्वारा पुनरुद्धार किये गये प्रथमानुयोग में गण्डिकानुयोग की बातें भी सम्मिलित समझनी चाहिए । उक्त आगमसूत्रों और पंचकल्पभाष्य में उल्लिखित 'गण्डिकानुयोग' की वर्ण्यवस्तु को देखते हुए यह निर्धारण करना कठिन है कि उसका विषय वास्तव में क्या था ? १. एते सव्वं गाहाहिं जहा पढमाणुनोगे तहेव इहइपि वनिजति विस्थरतो। -आवश्यकचूर्णि, भा० १, पृ० १६०. २. पूर्वभवाः खल्वमीषां प्रथमानुयोगतोऽवसेयाः। -आवश्यकहारिभद्रीयवृत्ति, पृ० १११-२. १. अनुयोगद्वारहारिभद्रीयवृत्ति, पृ० ८०. ४. परिभाशो पध्वजा भावाओ नस्थि वासुदेवाणं । होइ बलाणं सो पुण पढमाणुशोगामो गायवो ॥ -आवश्यकनियुक्ति, गा० ४१२. ५. विजयवल्लभसूरि-स्मारक-ग्रन्थ, पृ. ५२ : प्रथमानुयोगशास्त्र अने तेना प्रणेता स्थविर भार्यकालक (मुनि पुण्यविजयजी). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy