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________________ पौराणिक महाकाव्य १२. शालिभद्रचरित्र ५६९ (सं० १६२३) १३. " विनयसागर प्रभाचन्द्र अज्ञात १४. , (प्राकृत) १६. धन्यविलास धर्मसिंहसूरि (सं० १६८५) १७. धन्यचरित्र उद्योतसागर (लगभग सं० १७४२) १८. , विल्हण कवि? ___कथा का सार-सुप्रतिष्ठितनगर में नेगम सेठ और लक्ष्मी सेठानी से धनचन्द्रादि पाँच पुत्र हुए। धन्यकुमार उनमें पाँचवाँ था। वह पूर्व जन्म में पिता के मर जाने से निधन होकर बाल्यावस्था में गाय के बछड़ों को चराता था। एक पर्व के दिन नगर के बालकों को खीर खाते देख उसने अपनी माँ से खीर की माँग की। माता ने पड़ोसियों से दूध, चीनी, चावल माँगकर खीर बनाई और गरम परोसकर किसी काम से बाहर चली गई। इस बीच एक मुनिराज आये और उस बालक ने प्रसन्न मन से आहारदान में वह खीर दे दी। माता के लौटने पर वह कुछ नहीं बोला। माता ने समझा कि इसने खीर खा ली है तथा और चाहता है इसलिए उसने और परोस दी जिसे खाकर वह सो गया। इससे उसके कई बछड़े नहीं लौटे। जागने पर वह उनकी तलाश में निकला और रास्ते में एक मुनि से श्रावकवत ले लिया तथा रात्रि में बछड़ों की तलाश करते समय वह एक सिंह द्वारा मारा गया। मुनिदान के प्रभाव से वह धन्यकुमार हुआ तथा स्वल्पकाल में सकल कलाओं का पारगामी हो गया। उसके ज्येष्ठ भ्राता उससे डाह करने लगे। उसने जीवन प्रारम्भ करते ही अनेक आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाये। उसने भेड़ों के युद्ध में हजार दीनार पाये, मृतक-खाट को खरीदकर उसमें कीमती रत्न पाये आदि । भाइयों में बढ़ती ईर्ष्या के कारण वह घर से बाहर निकल गया और बुद्धिवैभव से अनेकों चमत्कार दिखाकर उसने राजगृह में अनेकों कन्याओं से तथा गोभद्र सेठ की पुत्री (शालिभद्र की बहिन) से विवाह किया और सुख से रहने लगा। इधर माता-पिता तथा भाइयों की हालत खराब हो चली। उन्हें आजीविका के लिए मजदूरी करनी पड़ी। उसने उन सबकी मदद की और बहुत ख्याति तथा राज-प्रतिष्ठा पाई। शालिभद्र अपने पूर्व जन्म में एक गरीब विधवा का पुत्र था। उसका नाम संगमक गड़रिया था। वह भेड़ें चराते समय सामायिक में बड़ा आनन्द लेता था। एक उत्सव के दिन उसने सब घरों में अच्छे सुस्वादु भोजन तैयार होते देखे और अपनी मां से भी पकवान बनाने को कहा। वह गरीब स्त्री बड़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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