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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कर्ता एवं कृतिकाल-इसके रचयिता अमरसुन्दरसूरि हैं। इनका नाम सोमसुन्दरगणि (वि० सं० १४५७) के शिष्यों में आता है। अमरसुन्दर को 'संस्कृत जल्पपटु' कहा गया है । रचनाकाल ज्ञात नहीं है।
धन्यशालिचरित-अपने ही विवेक से पात्र-दान रूपी धार्मिक प्रवृत्ति द्वारा जीवन को उच्च साधना पथ पर ले जाने के लिए श्रेणिक और महावीर के समकालीन राजगृह के दो श्रेष्ठिपुत्र-धन्यकुमार और शालिभद्र के चरित्र जैन कवियों को बहुत प्रिय हुए हैं। धन्यकुमार की कथा अनुत्तरोववाइयदसाओ' में
और प्रकीर्णकों के मरणसमाधि में धन्य और शालिभद्र के (प्रायोपगमन-समाधि के उदाहरणरूप) कथानक आये हैं। ये दोनों भी प्रत्येकबुद्ध की श्रेणी में आते हैं। इन दोनों को एक साथ कर धन्यकथा, धन्यचरित्र, धन्यकुमारचरित्र, धन्यनिदर्शन, धन्यरत्नकथा, धन्यविलास, धन्यशालिभद्रचरित्र, धन्यशालिचरित्र और शालिभद्रचरित्र' नाम से अनेक रचनाएँ लिखी गई हैं जिनका विवरण इस प्रकार है:
१. धन्यकुमार या शालिभद्रयति २. धन्यशालिचरित्र ३. शालिभद्रचरित्र ४. धन्यशालिभद्रचरित्र
६. धन्यकुमारचरित्र ७. धन्यशालिचरित्र ( दानकल्पद्रुम)
गुणभद्र (१२वीं शताब्दी) पूर्णभद्र (सं० १२८५) धर्मकुमार
(स० १३३४) भद्रगुप्त
(सं० १४२८) दयावधन (सं० १४६३) सकलकीर्ति (सं० १४६४) जिनकीर्ति (सं० १२९७) जयानन्द (सं० १५२०) यशःकीर्ति मल्लिषेण (१६वीं का प्रारम्भ) ब्रह्म नेमिदत्त (सं० १५१८-२८)
९. धन्यकुमारचरित्र १०. धन्यकुमारचरित्र ११. "
.. १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, पृ० २४३. २. गा० १२२, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १७२; विंटर
नित्स, हिस्ट्री माफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५१८; दोनों सगे
संबंधी थे और दीक्षा में एक-दूसरे से प्रभावित थे। ३. जिनरत्नकोश, पृ० १८७ और ३८२.
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